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2.
प्राचीन भारतीय अभिलेख तस ये पत्रे अपोमु। वषये पंचमये 4+1 वेश्रखूस मसस दिवस पंचविश्रये इयो (3) प्रत्रिथवित्रे विजयमित्रेन अप्रचरजेन भगवतु शकिमुणिस सम संबुधस शरिर।
(भीतर) विश्पिलेन अणंकतेन लिखित्रे। (संस्कृत) इदं शरीरं पुरुग्णभूतकं (भग्नंभूतं) न सत्कारेण आदृतम्। तत् शीर्य्यति कालतः, (अत्र कः अपि) न श्रद्धः ( = श्रद्धालुः ) न (च) पिण्डोदकानि पितॄन ग्राहयति। तस्य एतत् पात्रं अवमुक्तं ( यद्वा, अवमुच्य); वर्षके पञ्चमके 5 वैशाखस्य मासस्य दिवसे पञ्चविंशके इह( पुनः) प्रतिष्ठापितं (च) विजयमित्रेण अप्रत्यग्राजेन भगवतः शाक्यमुनेः सम्यक् सम्बुद्धस्य (नवं) शरीरं ( अस्मिन् पात्रे )। विश्विलेन आज्ञाकृता (आज्ञाकारिणा) लिखितम्।
समूह-1
(अ)
(वर्ष में) महाराज मीनेन्द्र का कार्तिक (मास) के चौदहवें दिन प्राण सहित (शरीर नष्ट हो गया)
(आ)
(भगवान् शाक्यमुनि के भस्मावशिष्ट शरीर की) प्रतिष्ठा करवायी गयी।
भगवान् शाक्यमुनि के प्राणों के साथ शरीर (देहावशेष)
(ब) अप्रत्यग्राज (अनधीन राजा, अप्रतिरथ अथवा अप्राच्य या पश्चिम के राजा) वीर्यकमित्र का।
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