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प्राचीन भारतीय अभिलेख
10.
या माना गया तथा जिसने शत्रु-समूह (जिन्होंने संघ बनाकर एक साथ मोर्चा बांधा उन) पर भी विजय प्राप्त की; जिसने शेषनाग के कन्धे से (उठाकर पृथ्वी को) आकाश में पहुंचा दी (या नागों के खेमों से डेरों) में सिमटी धरती की गगनव्यापी उन्नति की); कुल श्री (लक्ष्मी, कान्ति) को असीम व्यापक करने वाले श्रीसातकर्णि की माता महादेवी गौतमी बालश्री ने; जो सत्यवचन, दान, क्षमा, अहिंसा में (सदा) लीन रहती है; तप, (इन्द्रिय) दमन (संयम), नियम, उपवास में तत्पर रहती है. जो 'राजर्षि की वधू' शब्द को पूर्ण रूपेण धारण करती है, ने दान धर्म (पूर्ण करने) के लिये कैलास पर्वत के शिखर के समान त्रिरश्मि पर्वत के (समुन्नत) शिखर पर श्रेष्ठ विमान के समान महा समृद्धिशाली (अथवा सभाभवन की सारी विशेषताओं से युक्त) लयन (गुहा) बनवायी। और यह गुहा महाराज की पत्नी, महाराज की माता, महाराज की दादी, भद्रयानी भिक्षुसंघ के निकाय (समूह) को प्रदान करती है। और इस गुहा में चित्र बनाने के लिये महादेवी पितामही की सेवा तथा स्नेह का इच्छुक नाती दक्षिणापथ का स्वामी (श्री पुलुमावि), पिता को प्रसन्न करने के लिये धर्म (तक पहुंचने की) सेतु (रूप इन गुहा) के लिये; त्रिरश्मिपर्वत के बायीं ओर, निकटवर्ती पिशाची पद्रक (नामक) ग्राम दान देता है जिसे राज्य कर (आदि) से मुक्त कर दिया गया है।
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