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अमोघवर्ष का संजान ताम्रपत्र
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को संजान का निकटवर्ती 24 गांव का मध्यवर्ती सरिवल्लिका नामक गांव
दान में दे दिया। जिनकी सीमाएं 65. (इस प्रकार हैं), पूर्व में समुद्र तक पहुंचने वाली कल्लुवी नदी है, दक्षिण
में उप्पत्थहथ्थक' भट्टग्राम है, पश्चिम में नन्दग्राम तथा उत्तर में धन्नवल्लिका
ग्राम है। संजान नगर के इस गांव में 66. शुंकन शुष्णयामि गांव, उसके वृक्षों सहित उपभोग्य है। इस प्रकार निर्दिष्ट
चारों सीमाओं वाला यह गांव तथा उसकी परिधि सहित, दसों अपराधों की
दण्ड व्यवस्था सहित, निश्चित उत्पादन सहित, 67. उपलब्ध होने वाली बेगार सहित, (स्वर्णादि) धन-धान्य के आदान सहित;
जहां नित्य एवं अनित्य (अस्थायी) सैनिक प्रवेश न करें तथा सारे राजकीय अधिकारियों का हस्तक्षेप न हो। चन्द्र, सूर्य, समुद्र, पृथ्वी, नदी, पर्वत की
आयु पर्यन्त पुत्रपौत्रादि वंश-क्रम 68. पर्यन्त उपभोग्य है। ब्राह्मण तथा देवताओं को पूर्वप्रदान किये हुए के
अतिरिक्त आंतरिक सिद्धि से सारे अधिकारों सहित शकराज की
काल-गणनानुसार 793 संवत् व्यतीत होने पर, नन्दनवर्ष के पूस मास में 69. (सूर्य के) उत्तरायण (संक्रान्ति) महापर्व पर भेंट-पूजा (आहुति) से
विश्वेदेव तथा यज्ञातिथि को तृप्त करने के लिये आज जल आदि छोड़कर सम्पन्न किया। अतः इस समुचित ब्रह्मदान की स्थिति से भोग करते अथवा करवाते हुए खेती करने अथवा करवाते हुए, किसी भी पथिक को प्रवेश नहीं करना चाहिये। तथा हमारे वंश के या अन्य भावी नृप भी यह विचारकर कि भूमिदान का फल सामान्य है तथा ऐश्वर्य चञ्चल बिजली सा अनित्य है एवं यह विचारकर कि जीवन तिनके की नोक पर लगी जलबिन्दु सा अस्थिर है, हमारे इस दान को अपना ही दान समझकर उसे यथावत् बनाये रखें। और
जो यह अज्ञानान्धकार-समूह 72. से दुकी बुद्धि को ढककर उसका अनुमोदन करता है वह उन पापों सहित
पांच महापापों से युक्त होता है। जैसा कि भगवान् वेदव्यास व्यास ने कहा हैसाठ हजार वर्षों तक
70.
खेती
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