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उदयपुर-प्रशस्ति 23. मिरभरैम्मौललोकस्तदाभूत्।
विश्व( सस्)तांगो निहत्योद्भटरिपुति( मिरभ )रं खड्गदंडांसुजालैरन्यो भास्वानिवोद्यन्धुतिमुदितजनात्मोदयादित्यदेवः।1॥ येन धरणीवराहः परमारेणो( द्धतो) निरायासा( त्)। (तस्यैतस्या भू )मेरुद्धारो वत कियन्मात्रः।22॥
(कुंवान्य-) तवाजिव्रजरु. . . . 1. ओम् । शिवजी को प्रणाम।
सर्प की क्यारी में गंगाजल से सींचे गये कालेन्दु के विमल अंकुर की आभा जिसके सिर पर झुकी हुई कल्पलता सी लगती है वह शिव आपको विभूति (प्रवर्धन) कारक हो। सानन्द हर्षकारक सुंदर तथा गम्भीर नन्दी की आवाज के साथ तुंबुरु के मनोरम गीतों पर जिसके समक्ष अप्सराएं निश्चय ही सतत नृत्य करती हैं वह शिव आपके लिये कल्याणकारी हो। 2 सिर पर स्थित आकाशगंगा तथा वृषभ से युक्त शिव की अर्धांगिनी बनने से उनसे सटी हुई, अपने स्वामी को वशीभूत देखकर अंग अंग से संतुष्ट पार्वती आपका पोषण करे। 3 वह गणेश आपको सुख दे जिसके हाथ में स्थित तेज कुठार नम्र (नीचा) तथा अत्यंत निंद्य (त्याज्य) कर्म रूप कन्द को काटने के लिये जैसे तैयार हो। 4 पश्चिम में हिमालय का पुत्र, सिद्ध-जोड़ों की सिद्धि का स्थान, ज्ञानियों को अभीष्ट फल देने वाला विशाल तथा पूर्ण अर्बुद (आबू) पर्वत है जहां विश्वामित्र ने वशिष्ठ की गाय का अपहरण कर लिया। वसिष्ठ के प्रभाव से अग्निकुण्ड से शत्रुशक्ति को
चूर करने वाला एक अद्वितीय वीर उत्पन्न हुआ। 5 7. पर अर्थात शत्रुओं को मारकर वह धेनु ले आया; तब मुनि ने कहा कि तुम
परमार नामक राजेन्द्र बनोगे। 6
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