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प्राचीन भारतीय अभिलेख
भगवती आर्य वसुधारा को प्रणाम! अपने धर्मामृत की धारा से विश्व के अनेक प्रबल दुःखों की विशाल धारा को शान्त करने वाली एवं धन तथा स्वर्ण की समृद्धि को पृथ्वी, अंतरिक्ष तथा स्वर्ग में विकीर्ण करती हुई सारे लोकों के सब जनों की दीनता को जीतने वाली बौद्धदेवता वसुधारा रक्षा करे। 1 जगत् के आलोक दीपों को प्रदीप्त करने वाले उस चन्द्रमा की जय हो जिसके देखते ही मनोरम चन्द्रकान्तमणि पिघल जाती है तथा उत्कण्ठित मानिनी के मान का कुकुदवनी की मुद्रा के साथ भेदन करते हुए जो शिव के द्वारा दग्ध कामदेव को अपनी सुधागार किरणों से जीवित करता है। 2 उस (चन्द्र) के प्रणाम योग्य पौरुष से युक्त, विस्तृत कीर्ति की कान्ति से युक्त, सद्यः पावित्र्य में गंगा के गर्व को चूर्ण करने वाले तथा शत्रुओं की राजलक्ष्मी से अप्रसन्न वंश में नृपों में सम्मान प्राप्त वल्लभराज नाम से प्रख्यात वीर हुआ जो विजेता, विशाल चरण पीठिका का स्वामी एवं अत्यंत प्रवृद्ध प्रताप से उन्नति कर रहा था। धिक्कोरवंश रूपी कुमुद के उदय के लिये पूर्ण चन्द्र (तुल्य) श्री देवरक्षित पृथ्वी पर प्रसिद्ध था। राजसिंहासन अथवा पीठी के स्वामी जिसने जो जगत् में अद्वितीय मनोरम श्री से सम्पन्न थे, अपनी लक्ष्मी से शत्रु की राज्यलक्ष्मी पर भी विजय प्राप्त कर ली। 4 उससे सागर से चन्द्रमा के समान लावण्य रूपी लक्ष्मी के विष्णु, नेत्रानन्द रूपी समुद्र को प्रवृद्ध करने में चन्द्रमा; कीर्ति द्युति तथा श्री का विधु (चन्द्रमा), सुजनता का आगार, प्रकाशित होते गुणों का निधि, गम्भीरता का सागर, हर्माद्वैत (?) (अद्वैतधर्म को मानने वालों से प्रमुख) का अद्वितीय आगार, प्रताप का कोष तथा शस्त्र विद्या का अद्वितीय आगार था। 5
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