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कुमारदेवी का सारनाथ अभिलेख
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23. से उसी प्रकार विवाह किया जैसे विष्णु ने लक्ष्मी से। उस नप के अन्तःपुर
की रानियों के मध्य वह उसी प्रकार शोभित हुई जैसे ताराओं के मध्य निश्चय ही शशिकला। 20 उसी (कुमारदेवी) ने, नव खण्डों तक विस्तृत मेदिनी का हार, यह विहार
बनवाया। 24. जो तारिणी वसुधारा की तेजस्वी मूर्ति से शोभित है। जिसकी देवताओं सी
विचित्र कारीगरी की पटुता की चरमसीमा देख, विश्वकर्मा भी अत्यंत चकित हो उठा। 21
श्री धर्मचक्र 25. बौद्ध के आदेश से निर्मित, सारी पत्तलिका (?) में अग्रणी उस जम्बुकी
(?) को ताम्रपत्र पर श्रेष्ठ आदेश लिखवाकर सूर्य-चन्द्र की स्थिति तक के लिये उसे प्रदान कर दिया। 22
धर्माशोक राजा के समय 26. जैसा जिन (बौद्ध) श्रीधर्मचक्र था, उसी नीति (पथ) की इसने उससे भी
अधिक रक्षा की। उस (कुमारदेवी) ने बड़े प्रयास से उस स्थविर का यह विहार बनवाया और उसी में बसते हुए उसे यह सूर्य-चन्द्र पर्यन्त समर्पित
कर दिया। 23 27. भूमि पर जो कोई उस कीर्ति का पालन करेगा, आप सारे जिन (बौद्धों)
साक्षी हैं, वह उस के चरणयुगल को प्रणाम करती है। उसके यश को लुप्त करने वाला यदि कोई अज्ञात दुष्ट हो तो उस पापी को शीघ्र ही हमारे क्रुद्ध लोकपाल अनुशासित कर देंगे। 24 तीर्थयात्रा पर निकले संन्यासी ब्राह्मणवादियों के गजसमूह से टकराने वाला सिंह, साहित्य के शुभ्र रत्नों का रोहणगिरि, आठ भाषाओं के कवि, बङ्गदेश
के राजा का 29. कृपाप्राप्त श्रीकुन्द नामक प्रख्यात कवि ने उस (कुमारदेवी) की मनोरम
वर्णों के गुम्फन की रचना से रमणीय प्रशस्ति की रचना की। 25 राजचक्र की सफलता से उपलब्ध श्रेष्ठ पाषाण पर वामन शिल्पी ने यह प्रशस्ति उत्कीर्ण की। 26
28.
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