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प्राचीन भारतीय अभिलेख
16.
18.
15. दान में उदार धैर्य, गज सी गति, नयनाकर्षक आकृति, शास्ता (राजा अथवा
बुद्ध) के समक्ष विनत, लोगों के द्वारा प्रणमित करुणा की क्रीडाभूमि एवं सदा लक्ष्मी का निवास पाप पर पहले ही आघात करने वाली तथा (इनसे) जिसके गुण का अहंकार प्रवृद्ध हो गया है। 13 क्षत्रियों के जगत्प्रसिद्ध गहडवाल वंश में नृपेन्दु चन्द्रमा नामक राजा उत्पन्न हुआ। जिसका सामना न कर पाने वाले नपों की कामिनियों के अश्रप्रवाह से यह
यमुना जल और भी अधिक काला हो गया। 14 17. उससे प्रतापी नृपों में मूर्धन्य, एकछत्र (ऐकाधिपत्य) धारण करने वाला
मदनचन्द्र नृप हुआ। जो अपनी पृथ्वी पर अमित प्रवृद्ध तेजस्वी अनल की कान्ति से (इतना) सम्पन्न था कि इन्द्र की श्री को भी अपनी श्री से नीचा दिखा दे। 15 उसका वाराणसी की भूमि दुष्ट तुर्क-वीरों से हर के साथ रक्षा करने में समर्थ पुत्र हरि हुआ, जिसका प्रसिद्ध नाम गोविन्दचन्द्र था। 16
चाहे जब चाहे जितना दूध देने वाली गायों के 19. दूध को वत्स पीते नहीं, आश्चर्य है कि उससे पूर्व ही याचकों के मन दैनिक
संतोष से युक्त हो जाता है। जिस राजा के त्याग से याचकसमूह के प्रसन्न होने पर नित्य स्वच्छन्द निश्चिन्त होकर पयःपान के उत्सव का सेवन होता है। 17 जिसके शत्रु नृपों की राजधानी में व्याध (आखेटक), मृगों को फंसाने का फन्दा समझकर गिरे हुए हारों को नहीं उठाते हैं तथा खिसक कर फैले हुए
स्वर्ण-कुण्डल को सर्प की भ्रान्ति से 21. भय से कांपते हुए हाथ के डण्डे से तत्काल हटा देते हैं। 18
जिसके उच्छिन्न शत्रु-नृपों की राजधानी के महलों पर सद्यः चमकते हुए, तीखी नोक की घास को खाते हुए चंचल अश्व समूह वाले सूर्य का रथ धीमा हो जाता था तथा घास खाने के लोभ का संवरण न कर पाने वाले मृगों से चन्द्र भी मन्दधुति हो जाता था। तब (वह नृप उन) गिरते हुए (उड़ते हुए सूर्य-चन्द्र) की रक्षा करता था। 19 उसी त्रिलोक-प्रसिद्ध राजा ने कुमारदेवी
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