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कुमारदेवी का सारनाथ अभिलेख
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दीनों को इच्छानुसार फल देने में वह साक्षात् कल्पतरु था, अहंकार से पूर्ण
शत्रुओं के पर्वतराज की भेदनप्रक्रिया में जो अप्रतिहत वज्र था। कामिनियों के 8. कामज्वर को शान्त करने में जो सिद्धौषधी का पल्लव था तथा जिसकी
भुजा राजाओं को चकित करने वाली थी। 6 गौड का अद्वितीय वीर, घटनाओं की कनात (परदा, या वितान, पटिक),
क्षत्रियों में मूर्धन्य 9. नृपों में मान्य उसका मामा अङ्ग का स्वामी महण प्रख्यात था। उस देवरक्षित
को युद्ध में बुरी तरह पराजित कर जिसने प्रवृद्धदीप्ति से युक्त लक्ष्मी श्रीरामपाल को प्रदान की क्योंकि उसने पराजित शत्रुओं को रोका था। 7 उस राजा महणदेव की कन्या से पीठी पति (पीठापुर के स्वामी?) ने उसी प्रकार विवाह किया जिस प्रकार हिमालय की कन्या से शिवजी ने। 8 जो शंकरदेवी के नाम से प्रसिद्ध एवं तारा के समान करुणापूरित थी।
दानकर्म के कारण जो कल्पलता को व्यञ्जित करती थी। 9 11. उनसे देवी के समान कुमारदेवी उत्पन्न हुयी जो शरत् के विमल सुधाकर
की मनोरम लेखा सी रम्य, दुःखसागर के मध्य से जगत् का उद्धार चाहने
वाली, स्वयं करुणा पूरित तारिणी सी अवतीर्ण हो गयी। 10 12. जिसका निर्माण कर विधाता अपनी कारीगरी की निपुणता पर गर्व करता
है, जिसके मुख ने चन्द्रमा को जीत लिया, वह (अपने गर्व पर) लज्जित हुआ और होश में आ गया। रात में उदित होता है और बाद में वह कलङ्की
मलिन हो जाता है। 13. उसकी सुंदरता हम जैसे लोगों को चकित करने वाली थी।
विचित्र एवं चंचल दृष्टि रूप से जो स्पष्ट ही हरिणियों को बांधने का पिंजरा धारण करती है। कमनीय शोभा से युक्त कान्ति से जिसका कायासम्भार
शोभित हो रहा है। 14. लहराते क्षीरसागर की घनी लहर की लावण्यकान्ति से आहत भाल
(कान्ति) के कारण सौभाग्यगर्व से जो पार्वती का गर्व धारण करती है। 12 धर्म में एकभाव, गुणों में स्नेह, प्रारब्ध पुण्य को एकत्र करने में निरत,
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