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प्राचीन भारतीय अभिलेख
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उसके वंश में वह उपेन्द्रराज हुआ जो सारे यज्ञों में एकत्र 8. देवसमूह ने जिसकी कीर्ति को उदाहृत किया तथा जिसने अपने शौर्य से
श्रेष्ठ नृप का सम्मान प्राप्त किया है एवं जो द्विजवर्ग में श्रेष्ठ है। उसका पुत्र शत्रु नृपरूपी हाथी के लिये वीरों में श्रेष्ठ सिंह श्रीवैरिसिंह हुआ। चारों समुद्रों तक फैली पृथ्वी पर जयस्तम्भ जिसकी प्रशस्ति गा रहे हैं। 8 उसका नृपों की शिरोमाला में लगे रत्नों की कान्ति की मनोरमता से जिसकी चरणचौकी रञ्जित है, हाथ की तलवार से पानी की लहर (धार) में शत्रुसमूह को डुबोने वाला, विजयी नृपों में श्रेष्ठ श्रीसीयक नामक पुत्र हुआ। 9
उससे अवन्ति की ललनाओं के नयन 11. कमल के लिये सूर्य श्री वाक्पति हुआ जो हाथ की खड्ग की किरणों से
प्रकाशित है। वह इन्द्र के समान था जिसके अश्वों ने गंगा तथा समुद्र के जल का पान
किया। 10 12. उससे वैरिसिंह हुआ। यह उसका दूसरा नाम था। लोग उसे वज्रटस्वामी
कहते थे। अपनी कृपाणधार से शत्रुसमूह को मारकर इस राजा ने श्रीमती
धारा का नाम सार्थक कर दिया। 11 13. उससे पर्वत से भी प्रतापशाली श्रीहर्षदेव हुआ। शत्रु नृपों के समूह की सेना
के गरजते गजों की आवाज ही जिसके लिये मनोरम तूर्यनाद बना और जिसने युद्ध में खोट्टिगदेव की लक्ष्मी का अपहरण कर लिया। 12 उसका पुत्र श्री वाक्पतिराजदेव हुआ जो सारी भूमि के भोग-वलास से विभूषित तथा गुणों का एकमात्र स्थान था। जिसने अपने शौर्य से सारे शत्रुओं के वैभव को जीत लिया तथा न्यायतः जिसने अर्थोपार्जन किया है। भाषण, वाक्चातुर्य, कवित्व, तर्क,शास्त्र तथा धार्मिक ग्रंथों के ज्ञान आदि विशेषताओं के कारण जिसका सज्जनों के द्वारा सदा गुणगान किया जाता है। 13 जिसके चरणकमल कर्णाट, लाट, केरल तथा चोल नृपों की चूडामणि से रञ्जित हैं तथा जो अपने स्नेही एवं प्रार्थीजनों को इतना देता है कि वह कल्पद्रुम कहलाने लगा। 14
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