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प्राचीन भारतीय अभिलेख
ज्येष्ठ कायस्थ, महामहत्तर (महाप्रतिहार या गांव का मुखिया), दाशग्रामिक
(मछुओं के गांव का मुखिया) आदि राज्य के अधिकारी 48. अपने अनुचरों सहित और पड़ौसी खेतों के स्वामी को ब्राह्मण के सम्मान
उतथा मानव जीवन समझकर, पूर्वोक्त उदाहृत बातें समझकर कि महासामन्ताधिमति श्रीनारायणवर्मा के दूतक युवराज श्रीत्रिभुवनपाल के
मुख से हमें ऐसी आज्ञा प्राप्त हुई है कि50. हमने माता, पिता तथा अपने पुण्य की अभिवृद्धि के लिये शुभस्थल पर
मंदिर बनवाया और वहां स्थापित भगवान् नारायण की पूजा-अर्चना आदि
की पूर्ति के लिये नाराणभट्टारक को 51 उसके संरक्षक लाट देश के ब्राह्मणदेव के चरणों में ये चार यहां के दट्टिका
तल पाटक 52 सहित देते हैं। सो हमने उस विज्ञप्ति के अनुसार ये उपर्युक्त चारों ग्राम तल
पाटक हट्टिका सहित अपनी सीमा पर्यन्त अपने क्षेत्र सहित, उसी दशा व दोष सहित, वसूली से मुक्त, सारे कष्टों से मुक्त, सारे अधिकारों सहित, चन्द्र-सूर्य-पृथ्वी की उम्र पर्यन्त वैसे ही बने रहें। सो आप सभी भूमिदान के महान् गौरव से उसके अपहरण
में महानरक में गिरने के भय से इस दान का अनुमोदन कर 55. पालन करें। पडौसी क्षेत्र के स्वामी भी इस आज्ञा को सुनकर यथोचित कर,
पिण्डक (अन्नांश) आदि सारे देय इनके पास ही ले जावे56. सगर आदि अनेक नृपों ने भूमिदान किया। जब जब जिसकी भूमि रही तब
तब उसे ही फल मिला।
भूमिदाता साठ हजार वर्ष तक स्वर्ग में आनन्द भोगता है। 57. उस दान को छीनने अथवा अनुमोदन करने वाला इतने ही वर्ष नरक में
बसता है। स्वयं अथवा अन्य के द्वारा दान में दी गयी भूमि का जो अपहरण करता है
वह अपने पितरों सहित मल का कीड़ा बनकर 58. परेशान होता (पचता) रहता है।
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