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प्राचीन भारतीय अभिलेख
5. महाराजाधिराज परमेश्वर श्री वाक्पतिराजदेव का चरणानुसा परम भट्टारक 6. महाराजाधिराज परमेश्वर श्री सिन्धुराजदेव का चरणानुसर्ता 7. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री भोजदेव सकुशल 8. स्थली प्रान्त के घाघ्रदोर भोग (जिले) में स्थित वटपद्रक (गांव) में
उपस्थित सारे राजकीय कर्मचारियों, ब्राह्मणों तथा आसपास बसने वाले लोगों को आदेश देता है। आप लोगों को ज्ञात हो। जैसा कि हमने कोंकणविजय के पर्व पर स्नान कर जड़ चेतन के स्वामी
भगवान् शिव 11. की अर्चना कर, संसार की असारता देखकर
यह वसुधा का स्वामित्व वायु से बिखरते बादलों के समान है, विषयोपभोग 12. क्षणमात्र के लिये मधुर है, मानवों के प्राण तिनके की नोक पर अटकी
जलबिन्दु के समान है और 13. परलोक जाने पर केवल धर्म ही परम मित्र रहता (जो साथ नहीं छोडता है)।3
घूमते हुए संसाररूपी चक्र की अग्रधारा पर टीकी हुई इस लक्ष्मी को प्राप्त
कर जो 14. दान नहीं कर देते उन्हें फल में पश्चात्ताप ही मिलता है। 4
इस प्रकार जगत् की नश्वर स्थिति जानकर15. यह भोजदेव के अपने हाथ से (प्रदत्त)
(द्वितीय पत्र) 16. ऊपर लिखे गये गांव से (एक) सौ निवर्तन (नि0 100) भूमि अपनी सीमा
की घास तथा गोचर भूमि पर्यन्त, स्वर्ण लेने सहित, हिस्से में प्राप्त लगान सहित, अतिरिक्त आमदनी आदि सब कुछ आय सहित भाइल ब्राह्मण को, जो वामन का वसिष्ठ गोत्र, वाजिमाध्यन्दिन शाखा का तथा एक प्रवर है एवं जिसके पूर्वज
छिंछा स्थान से निकले हैं, को 19. माता, पिता तथा अपने पुण्य एवं यशोवृद्धि के लिये, परोक्ष फल स्वीकार
कर चन्द्र-सूर्य-पृथ्वी-सागर
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