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धंगदेव का खजुराहो अभिलेख
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आदि तीन उग्र को विनष्ट किया, तथा जिसने अपनी कण्ठध्वनि से सम्पूर्ण भुवन को चकित कर दिया वह वैकुण्ठ आपकी रक्षा करे। 1 बलि को छलने के मध्य भगवान हरि रक्षा करे जिसके तीन पद को चकित होकर देव-दानव तत्काल प्रणाम करते हैं।जिसमें ब्रह्मा ने अर्घ्य के लिये जल फैलाया, जो (हरि के) चरणकमल से निकला था तथा जिस पवित्र जल को तीनों लोक के एकमात्र पिता हर, सिर पर धारण करते हैं। 2 वह देव आपकी रक्षा करे, जलकण जिसके तारांकित आकाश के समान सुशोभित काजल की पवर्त-भित्ति के समान विशाल वक्ष स्थल पर दैत्य के आयुध के घाव से अंकित सारे देवताओं को छोड़कर, मन्दराचल के साथ घूमती लक्ष्मी के कटाक्ष की भांति जिन पर पड़ी। 3 गम्भीरता में सागर, कान्ति में चन्द्रमा, प्रताप से उज्ज्वल सूर्य, धीरता में धरती, महत्ता में समुन्नत पर्वत, त्याग में कल्पवृक्ष-सच बताओ यदि कभी सम्पूर्ण युग में निश्यात्मक रूप से विमल गुण समूह से अभिराम स्वामी यशोवर्मा के समान कभी कोई हुआ हो। 4 अविकृत अव्यक्त प्रधान से महान् हुआ तथा उससे अहंकार उत्पन्न हुआ। जिससे उपग्रह (राहू केतु आदि) समूह उत्पन्न हुए। उससे तन्मात्रा उत्पन्न हुई तथा इनसे क्रमशः (पञ्च) भूत तत्पश्चात् इनसे सारा भुवन प्रवृत्त हुआ। 5 यहां सारी विद्या का आदिम कवि, सारे युग की समाप्ति का साक्षी देव, जो तीनों लोक के निर्माण में चतुर है, विकसित कमल की केसर पर निवास करने वाला, सबका स्वामी अपनी ही महिमा से विधाता प्रथम प्रभु हुआ।6 उस विश्वसृष्टा पुरातन पुरुष, वेदसदन कवि से जो प्राचीन काल में पवित्र चरित्र वाले मरीची आदि मुनि हुए उनसे सतत तप से तीव्र प्रभाव वाले पुत्र 'चन्द्रात्रेय' उत्पन्न हुआ। निसर्ग प्रभा रूपी ज्ञान-प्रदीप वाले मुनि चन्द्र (उत्पन्न) हुए। 7 उस अखिल विद्या के ज्ञाता, सारे वेदों के ज्ञान से नम्र तथा कल्याणकारी के अपने जगत्प्रसिद्ध प्रशंसनीय वंश में न तो पराक्रम से लघुता, न चाटुकारिता से औद्धत्य, न आत्मशक्ति तथा
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