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धंगदेव का खजुराहो अभिलेख
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उत्तेजित योद्धा-ऋत्विक् पर, शत्रु संहार की क्रोधाग्नि के उद्दीप्त होने पर चिल्लाने के रूप में मन्त्रोच्चार करते हुए उस कृती ने पशुओं को समान शत्रुओं को अग्नि में होम दिया। 17 उस अमित शक्तिशाली नृपों में श्रेष्ठ नृप की कल्पतरु के समान् राजा श्रीहर्ष
पुत्र हुआ। 11. अब भी जिसके सुविकसित यशः पुष्प की गन्ध से दिशाओं की वायु
सुरभित है। 18 जिसमें श्री तथा सरस्वती एक साथ निवास करती है। नीति के अनुसार चलने वाला, प्रतापी, तेजस्वी, प्राणशक्ति के गुणों से उज्ज्वल है। जिसमें क्षमा स्वाभाविक रूप से परिणत है। संतोष, विजयेच्छा, नम्रता, सम्मान आदि अनन्त गुणों से युक्त उस विस्मय निधि के किन-किन गुणों की स्तुति करें?19 धर्मापराध में भीरु, कृष्ण के चरणों की सेवा का प्यासा, पाप की बात से अनजान, स्वगुणों को गिनने की प्रक्रिया में अमुखर, निन्दा की बात में शून्य, जन्म से ही झूठ बोलने में मूक सर्वत्र इसी प्रकार अपने स्वाभाविक गुणों वाले इसकी कौन स्तुति (नहीं) करता? 20 उस अप्रतिहत मेधावी तथा अत्यंत रूपवान् अंगों वाले (नृप) ने अपने अनुरूप, अपने ही वर्ण की चाहमान कुल में उत्पन्न कंचुका या कच्छुका से विधिवत् विवाह किया । 21 जिसके पतिव्रत की तुला पर चढ़ने के लिये अरून्धती का अभिमान भी समर्थ नहीं। पति के इच्छित विधान से युक्त होने पर भी साध्वी (अल्प प्रयास करती थी) अति लज्जित सी परम कृश हो गयी। 22 उससे उस (कच्छुका) में राजकुल में श्रेष्ठ श्री यशोवर्माराज (पुत्र) उत्पन्न हुआ। गौड की पीड़ा-लता रूपी खड्ग से जिसने खसों की शक्ति (सेना)को तोल लिया, कोशलों का कोशल और कश्मीर के वीरों को नष्ट करते हुए, मिथिला के नृप को शिथिल (क्लान्त) करते हुए मालवों का काल बनते हुए अनुदात्त चेदि को क्लान्त करते हुए, कुरु-तरु का वायु तथा गूजरों का ज्वर था। 23
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