________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धंगदेव का खजुराहो अभिलेख
263
गंगा के निर्झर की घर्घर ध्वनि-भय से भागते अश्व समूह से तत्काल सोकर
जगे सिंह 18. से गजसमूह त्रस्त हो उठे। जिसके सैन्य ने कल्पवृक्षों के समान वृक्षों की
सुमनराशि को तोड़ डाला तथा दिग्विजय में किसी प्रकार धीरे-धीरे हिमालय पर्वत की श्रेणियां भी पार कर ली। 30 समुन्नत प्राकार की भित्ति पर स्थित मदमत्त मयूर की तेज आवाज .... रथ के थके अश्व के वेग में बाधा पाकर जिस अपराहण में सूर्य के स्थित रहते प्रतिदिन नीलकण्ठ की अधिवास, पृथ्वी के तिलक के समान कालञ्जर
पर्वत को लीला में ही ले लिया। 31 19. जब से शस्त्र ग्रहण किया, परम वीर के व्रत की प्रक्रिय अखण्डित रही।
बचपन से जब से पाणिग्रहण हुआ सत्य का व्रत अलुप्त रहा; इच्छुकों को अभीप्सित बिना थके पूर्ण स्ववैभव दिया। जिसकी उत्कर्षकथा की प्रशंसा साधुजन रोमाञ्चित होकर करते हैं। 32 "अन्य पुरुष का साथ करने से निन्दित होऊंगी, लगातार घूमने से कदाचित् शान्ति सुलभ न होगी।" (यह विचार कर) जिसका अमित पौरुष उसे अतिमानवीय बना देता है तो इस लोक में । समुद्र तक व्याप्त उसकी कीर्ति अनिन्दित ही है। 33 श्री कृष्ण से देवकी के समान अकेली कच्छुका ही इस लोक में जिस धीर पुत्र के जन्म से सिर ऊंचा कर सकी। 34 शौर्य, उदारता, नीति, दया आदि विमल गुण समूह से जिसके मनोरम यश के गीत, जो सारे विमल स्वामीजनों में श्रेष्ठ हैं, सिद्धांगनाएं गाती हैं। शत्रुनाश में वह रवि है जिसने तीनों लोक को स्पष्ट ही उज्ज्वल कर दिया, दीपदान के समान सहस्रों युद्धोत्सव मनाये। 35
क्रोध की उत्तेजना से भौंह की कुटिलता 21. के जाल पर प्रचण्ड धनुष की यष्टि ध्वनित हो रही तथा प्रत्यञ्चा के आघात
से अत्यंत घोर ध्वनि से चकित मन भय से आंखों में चकराने लगता है; स्पष्ट ही दूरस्थ शत्रुओं के नष्ट होने पर जिस भुवन विजयी का क्षत्रतेज रूपी सागर की भुजा की खुजली शांत नहीं हुई। 36
For Private And Personal Use Only