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प्राचीन भारतीय अभिलेख
जिसकी कीर्ति पंक्ति तीनों लोक में व्याप्त है। यथेच्छ लक्ष्मी है, जिसका क्रोध शाप तथा चाप से प्रयलयंकारी महिमाशाली है। उस नीति तथा
विक्रम के 14. अद्वितीय सागर का क्या कहना जिसका शिष्य सभद्रापति (अर्जन) है।
जिसकी क्रीडा से शिवजी के गर्व की गरिमा भी गर्वित है। 31 जिसकी भुजाएं धनुष पकड़ने में शक्तिशाली थीं, जिसने तीव्र शरों से पाण्डुसैन्य समाप्त कर दिया, जिसे देखकर विक्षत होकर शत्रुओं से पराजय की आशा से वह सत्य का आदर करने वाला तपस्वी का पुत्र (युधिष्ठिर) भी विचलित हो गया। 32 द्रुपद का कष्ट दूर करने के विचार से उसने अपने हाथों की चुलुक (अञ्जली) में शाप के लिये जल लिया उसी में एक साक्षात् विजय के समान पुरुष (उत्पन्न हुआ) था जिससे परमशक्तिशाली चौलुक्य कुल का प्रवर्तन हुआ। 33
वैभवशाली, प्रवर्धमान शौर्य तथा सौन्दर्य से श्रेष्ठ 15. नृपों की परम्परा से शृंखलित उस गोत्र में अवनिवर्मा हुआ जिसने चंचल चाप
की प्रत्यञ्चा के साथ शत्रुओं की लक्ष्मी भी खींच ली तथा जिसके कर्म विश्वविख्यात हैं। 34 जिसके पितामह सिंहवर्मा तथा जिसके पिता वीरवर सधन्व थे। जिसने जगत् में इसी से अतिशयता व्यापी। इसमें उसकी महत्ता ने भी योग दिया। 35 जिसके त्याग ने सारी जनता के दारिद्र्य की मुद्रा तोड़ दी, जिसके प्रताप से शत्रु समुद्र की तटवर्ती पर्वतगुहाओं में जा छिपे, उसके गुणों की गणना करने की यदि कोई इच्छा करे तो सम्भवतः वही जिसकी वाणी के भगवती सरस्वती अधीन हो। 36 पर्वतराज (हिमालय) ने जैसे रुद्राणी, सागर ने जैसे लक्ष्मी, सर्य ने जेसे यमुना, चन्द्रमा ने जैसे ज्योत्स्ना, जनक के यज्ञ ने जैसे वैदेही प्राप्त की तथा सामन्तों से जैसे उसने रत्न प्राप्त किये वैसे ही उसे नोहला नामक एक अद्भुत मनोरम कन्यारत्न प्राप्त हुआ। 38 देवराज की पुलोमा के समान, अंधकार के विनाशक सूर्य की छाया के
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