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प्राचीन भारतीय अभिलेख
जिसके चरण कमल विभूति (लक्ष्मी) में निवास से और प्रणाम करते नृपों के मुकुट शिखर में लगे रत्नों की किरणों से विभूषित है वक्ष रूपी समुद्र का आश्रय पाकर खड्गधार की आश्रित लक्ष्मी भी अन्य वीरश्री के समान जिस नृप के पास चली आयी। 66
6. छोटा भाई युवराजदेव हुआ जिसके चरणों पर गिरते हुए राजा कमल पर गिरते भ्रमरों के समान लगते थे। जो सत्यव्रत, शक्ति तथा सत्त्व की बस्ती था तथा विक्रम का अद्वितीय आश्रय था। उसके सारे गुणों को व्यक्त करने में प्रायः कोई भी सज्जन (स्वयं कवि भी) समर्थ नहीं है। 67
जिस नृप के शास्त्रधारी हाथ ने आक्रमण कर व्याघ्र शरीरी अत्यंत भयंकर दैत्य को मार डाला जो दंष्ट्रा की नोक से विदारक उग्रमुख वाला, क्रूर स्वर वाला, भयानक, जिसके नेत्रतटों पर क्रोध का रक्त फैलता था, पैरों के पजे जिसके आयुध थे तथा जो पूंछा उठाकर चलता था। 68
27. जो कामिनियों के नेत्रों को प्रसन्न करने वाला अभिनव मदन होने पर भी काल बनकर (अपने) खड्ग की धार से विशाल गज कुम्भों को चूर करता था। आश्चर्य है कि यद्यपि उसकी सरस्वती में प्रीति भी तथापि वह शिवजी की पूजा में निरत रहता था। चातुर्वर्ण्य विषयक विचार करने में वह अत्यंत चतुर था तथा वह याचकों के लिये (इच्छापूर्ति कारक ) चिन्तामणि था। 69 रेवा के निर्मल जल में युवतियां जब दैनिक स्नान करने लगतीं तब, जिसके समुन्नत गजों के स्नान से निकलते मदजल से वह मिश्रित होने से उनके अपने मोटे नितम्बों की फटकार से लहरें अस्त-व्यस्त हो जाती थीं- इस प्रकार उसने महान् स्मरसौरभ से निश्च्छल युद्ध का आयोजन कर दिया। 70 रमणियों
28. के स्तनमण्डलों पर पहिने गये विविध हारों के डोलने से, सारे विमल शशिमण्डल में ज्योत्स्ना के व्याज से एवं मानो विस्तृत मानस के स्वच्छ जल में (तैरते ) हंसों के बहाने जिसका यश सर्वत्र भ्रमण करता हुआ शिवजी के निवास स्थान पर पहुंच गया। - 72
अपने यथोचित वैभव से भगवान् शिव की पूजा कर आगम तथा शास्त्र के अनुरूप राजा ने स्तोत्र रचा। - 71
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