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प्राचीन भारतीय अभिलेख
न आत्मनाश जैसी फलप्राप्ति हुई। 8
उन नृपों की क्या प्रशंसा की जाय जिनकी शक्ति सारी पृथ्वी के विनाश अथवा पालन में समर्थ हैं। जिनका पीड़ितों के दुःख दूर करने में मन विशेष लगता है, जो सारी समृद्धि के समान है, सत्ययुग के आचार से अनुरूप पुण्यशाली तथा विमल यश से युक्त हैं। 9
उस वंश में क्षत्रिय स्वर्ण में सार के लिये निकषोपल (कसौटी), (साक्षात् ) यश रूपी चन्दन की क्रीड़ा से अलंकृत दिशा रूपी
रमणी का वदन राजा श्री नन्नुक हुआ जिसके अपूर्व पराक्रम के क्रम से सारे शत्रु झुकते हुए सम्भ्रान्त नृप, विस्मृत अथवा अवशिष्ट आदेश को सिर (बन्दीजनों) से वहन करते से प्रतीत होते हैं। 10
कामदेव सी काया वाला अनेक शत्रु समूह का विजेता, प्रसन्न मागधवृन्द (बन्दियों) के द्वारा विरचित स्तोत्र क्रिया के क्रम से युक्त वह नृप तन्वङ्गी कामिनियों के हृदय में तत्काल पैठ गया और अपने सीमावर्ती
शत्रुओं के समूह में अपने बल से कायरता फैला दी।
युद्ध में को पराजित करने वाले उस नृप का श्रीवाक्पति (पुत्र) हुआ जिसकी वाणी वाक्पति बृहस्पति के समान थी तथा जिसकी विकास कीर्ति सूर्य की कान्ति के साथ तीनों लोक में भ्रमण करती है। 12
स्वच्छ शिला पर बैठी किरात-कामिनियां के द्वारा गाये गये गीत तथा तदनुरूप ही ध्वनि से रमणीय शिखर वाले विन्ध्य क्रीडापर्वत, जिसके शिखर निर्झर के जलपात की झंकार
से नर्तित मयूरवृन्द हैं। 13
क्षीरसागर से चन्द्र तथा कौस्तुभ के समान, उस अचरज के सदन के जयशक्ति तथा विजयशक्ति दो पुत्र हुए। 14
उन दोनों के अमित प्रताप की दावाग्नि से शत्रु-वन जलाने वाले कर्मों की रोमांचित होकर सिर हिला हिला कर नृपगण प्रशंसा करते हैं। 15 उनमें से अनुज विजयशक्ति के राहिल नामक पुत्र हुआ।
जिसका ध्यान आने पर रात में शत्रुगणों को नींद नहीं आती। 16
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भयंकरता से घूमते खड्ग रूप सुवा से स्रवित होते रक्त से घ्रतक्रिया सम्पन्न होने पर प्रत्यञ्चा की आवाज से आहुति-मन्त्र- शब्द होने पर क्रम से घूमते