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मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति
यस्य वैरिबृहद्वंशान्दहतः कोपवह्निना । प्रतापादर्णसां राशीन्यातुवैतुष्ण्यमावभौ ॥21॥ कुमार इव विद्यानां वृन्देनाद्भुतकर्मणा । यः शशासासुरान्घोरान् स्त्रणेनास्त्रैकवृत्तिना । 22 । यस्याक्षपटले राज्ञः प्रभुत्वाद्विश्वसंपदः । लिलेख मुखमालोक्य प्रातिलेख्यकरो विधिः ॥23॥
उद्दामतेजः प्रसरप्रसृता शिखेव कीर्तिर्द्युमणिं विजित्य । जाया जगद्भर्तुरियाय यस्य चित्रं त्विदं यज्जलधींस्ततार ॥24॥ राज्ञा तेन स्वदेवीनां यशः पुण्याभिवृद्धये ।
अन्तःपुरपुरं नाम्ना व्यधायि नरकद्विषः ॥25॥
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यावन्नभः सुरसरित्प्रसरोत्तरीय यावत्सुदुश्चरतपः प्रभवः प्रभावः । सत्यं च यावदुपरिष्ठभवत्यशेषं तावत्पुनातु जगतीमियमार्यकीर्तिः 126 1 पातुर्विश्वस्य सम्यक् परममुनिमत श्रेयसः संविधानात् अन्तर्वर्त्तिर्विवेकः स्थित इव पुरवो भोजदेवस्य राज्ञः । विद्वद्वृन्दार्जितानां फलमिव तपसां भट्टधन्नेकसूनुरर्बालादित्यः प्रशस्तेः कविरिह जगतां साकमाकल्पवृत्तैः ॥27॥ ओम | विष्णु को प्रणाम्।
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शेषनाग के बिछौने के निचले श्वेत भाग पर सुशोभित, वक्षःस्थल पर उल्लखित कौस्तुभ मणि की रक्तिम शोभा से चन्द्रमा तथा सूर्य से आकाश को प्रकाशित करने से सूर्य तथा चन्द्रमा के बिम्ब की समानता वाला नरकासुर के शत्रु (विष्णु) का श्याम शरीर आपकी रक्षा करे। 1
असुरों के शत्रु देव ने आत्मा रूपी उद्यान के फल से उपलब्ध पहले नैसर्गिक गुणवान् क्षेत्र में ज्योति का जो स्वस्थ बीज बोया था।
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उस सूर्य से श्रेष्ठ कन्द रूप तेजस्वी शरीर उत्पन्न हुआ और (उससे) मनु, इक्ष्वाकु, ककुस्थ, मूल पृथु आदि कल्पवृक्ष के समान नृप हुए। 2 उनके वंश में रावण के हन्ता सुजन्मा राम हुए, जो प्रताप तथा वज्र से भी कठोर एवं यज्ञ कर्म के विनाशक राक्षसों के हन्ता थे।