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प्राचीन भारतीय अभिलेख
यह उसी का प्रशंसनीय अनुज (लक्ष्मण) है जो
इन्द्र के अहंकार के विनाशक मेघनाद को कठोर (मृत्यु) दण्ड देने वाले तथा देखरेख करने के कारण राम के प्रतीहार थे। 3
तीनों लोक की रक्षा में निरत जो प्राचीन मुनियों के अद्भुत शरीर के मूर्तिरूप थे। जो सत्कर्मों के विनाशक म्लेच्छ नृप
की अक्षौहिणी सेना को, चमकते हुए मनोरम व तीखे तीरों से शोभित चार भुजाओं से विनष्ट करता हुआ शोभित हुआ। 4
शोभन कुल का यशोरूप काकुत्स्थ नामक उसके भाई का पुत्र हुआ। वह राजाधिराज व्यंग्य (प्रतीक) तथा प्रियवाणी व्यवहार करने से जगत् में कक्कुक के नाम से प्रख्यात हुआ । उसका अनुज देवराज हुआ जो सघन राज्य की धुरा वहन करने से वज्रधारी इन्द्र के समान था ।
जिसने यज्ञ के विशाल पक्ष (पंखों) को काटकर गतिहीन
बनाकर भूभृत (पर्वत अथवा नृप) समूह को अपने नियंत्रण में कर लिया। 5 उसका पुत्र राजा वत्सराज उत्पन्न हुआ। जो उदयाचल में चमकते सूर्य सा प्रतापशाली था । तथा जिसने राज्य प्राप्त कर सारे जगत् को झुकाकर उसका प्रेमपात्र हो गया। जिसकी गज के मद की सुरा आस्वादन से अत्यंत प्रफुल्लित सम्पदा आंख झपकाती (पक्ष के नृपों पर दृष्टिपात करती), स्नेहियों के द्वारा आलिंगित कान्ता सी शोभित है। 6
प्रख्यात भण्डिकुल
के मदमत्त हाथियों के दुर्लंघ्य वप्र से जिस प्रत्यञ्चा चढ़े धनुष के मित्र ने युद्ध में बलपूर्वक साम्राज्य ले लिया । श्रेष्ठ क्षत्रियों में उस अकेले ने यश के भारी धुरे को वहन करते हुए सुचरित से अपने नाम से अंकित कर इक्ष्वाकु कुल को उन्नत कर दिया। 7.
प्रख्यात कीर्ति वाला आदि पुरुष पुनः इससे उसी नागभट से उत्पन्न हुआ। जिसके
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कुमार पद रूप प्रकाश पर ही सिन्धु, विदर्भ, कलिंग आदि के नृप पतंगों के समान आ गिरे और उन्होंने अपना अस्तित्व मिटा दिया। 8
उस वेदज्ञ, सत्कर्मकर्ता, समृद्धि के इच्छुक ने, क्षत्रिय के तेज की युक्ति के