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धर्मपालदेव का खालिमपुर ताम्रपत्र
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36. खण्डमुण्डमुख तक। खण्डमुण्डमुख से वेदसविल्विका, वेदबील्विका से
रोहितवाटि, पिण्डारविटिजोटिका सीमा कही गयी। 37. रजोट के दक्षिण एवं ग्राम बिल्व के दक्षिण के मध्या देविका सीमा विटि।
धर्मायोजोटिका। इस प्रकार माढाशाम्मली गांव है। 38. इसके उत्तर में गंगिनिका सीमा बनाती हैं और पूर्व से अर्धम्रोतिका से
लगाकर आम्रयान को लर्धयानिका तक चली गयी। वहां से39. दक्षिण में कालिका श्वभ्र तक। यहां से निकलकर श्रीफलभिषुक से पश्चिम
और वहां से भी बिल्वङ्गअर्धस्रोतिका 40. से गंगिनिका तक चली जाती है। पालितक में सीमा दक्षिण से काणद्वीपिका,
पूर्व से कोठिया झरना, उत्तर से 41. गंगिनिका तथा पश्चिम से जेनन्दायिका है। यह गांव समारीण (पार का)
कर्म द्वीप है। स्थालीकट विषय से 42. सम्बद्ध आम्रपण्डिका मण्डल में गिरने वाला गोपिप्पली ग्राम की सीमा (इस
प्रकार है-पूर्व में उद्ग्राम मण्डल की सीमा पश्चिम तक है, दक्षिण में 43. जोलक, पश्चिम में वेसानिका नाम की खाटिका (अर्थी), उत्तर में उद्रग्राम
पथ), इन चारों ग्रामों में आये हुए सारे राजा, अधीनस्थ राज्य, राजकुमार, राजकीय मन्त्री, सेनापति, विषयपति, भोगपति, षष्ठाधिकृत (छठा राजअंश उगाहने
वाला अधिकारी) 45. दण्डशक्ति (दण्ड देने वाला अधिकारी) दाण्डपाशिक, चौरोद्धरणिक (चौरों
से रक्षा करने वाला), दै साधसाधनिक (डाकू पकड़ने वाला), दूत खोल गामागामिक, दौड़ते हुए हाथी, घोड़े, गो, भैंस, बकरी भेड़ सद्यः व्यायी गोदुग्ध का अधिकारी, नौकाध्यक्ष, बलाध्यक्ष, तरिक शौल्किक (नाव की चूंगी लेने वाला), गौल्मिक (सेना की टुकड़ी का सिपाही); इन स्थानों पर नियुक्त तथा नियोक्ता आदि राजकीय पदों से
जीविका चलाने वाले और भी दूसरे जिनका 47. उल्लेख नहीं हो सका ऐसे चाट (अस्थायी सैनिक), भट (स्थायी सैनिक)
आदि वर्ग के लोग एवं कालाध्यासी (समय सूचक घंटा बजाने वाले),
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