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प्राचीन भारतीय अभिलेख
24.
पर
23. गोपालों ने सीमा पर, वनचरों ने जंगल में, गांव की चोपालों में लोगों ने, हर
चौराहे पर खेलते शिशुओं ने, हर दुकान पर दुकानदारों ने, लीलागृह में पिंजरे में बैठे शुकगणों ने जिसकी स्तुति की।
अपनी इस स्तुति को सुनकर उसका मुख 25. सदा लज्जावनत रहता है। 13
उसने गंगा-पथ पर वर्तमान अनेक प्रकार की नौका की लिये लकडी के
तख्ने लगाकर बांध में पर्वत-शिखर तथा श्रेणी सा चमकता 26. प्रभूत वर्षाकालीन मेघ-समूह सा अंधेरा करता, दिन लक्ष्मी में ही प्रस्तुत
सतत मेघ काल 27. के संदेह से उत्तर देश के अनेक नरपति उपहार देने लगे-अगणित अश्वों की
सेना के तीखे खुरों से उड़ी धूल से सारे दिगन्त व्याप्त हो गये। अपने स्वामी की सेवा के लिये आगत सारे जम्बूद्वीप के नृपों के अनंत पैदल सैनिकों के भार से भूमि दबने लगी। ऐसे पाटलिपुत्र में पड़ाव डाले श्री जयस्कन्धावार (छावनी) से परम बौद्ध महाराजाधिराज गोपालदेव के चरणानुवर्ती परमेश्वर वर परमभट्टारक महाराजाधिराज श्रीमान् धर्मपालदेव कुशलतापूर्वक
श्री पुण्ड्रवर्धन भुक्ति (प्रान्त) 31. के व्याघ्रतटी मण्डल (क्षेत्र) से सम्बद्ध महन्ताप्रताश विषय (जिले) में
क्रौञ्जश्वभ्र नामक गांव, जिसकी सीमा (इस प्रकार है)पश्चिम में गांगिनिका, उत्तर में कादम्बरी देवमन्दरी और खजूर का वृक्ष,
पूर्वोत्तर में राजपुत्र देवट कृतालि 33. बीजपूरक तक चली जाती है। पूर्व में विटकालि खाटकयानिका तक चली जाती है। जम्बूयानिका को पार कर जम्बूयानक तक चली गयी।
_ (अपर भाग) 34. वहां से निकलकर पुण्याराम (पवित्र उद्यान) विल्लार्ध स्रोतिका तक और
वहां से चलकर 35. नलचर्मट के उत्तरी छोर तक चली गयी, नलचर्मट से दक्षिण में हेसदुम्मिका
से नामुण्डिका भी।
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