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प्राचीन भारतीय अभिलेख
57.
55. वे प्राचीन नरेश वन्दनीय हैं जिनके धर्म का हम जैसे नृपों को पालन करना
है। वर्तमान के सारे दुष्ट विनष्ट कर दिये गये हैं तथा भावी नरेशों से धर्म ___ (पर चलने) की प्रार्थना की जाती है। 56. कुछ ने जिसे अपने शौर्य से भोगा था, अन्यों ने जिसे दूसरों को (दान में)
दिया तथा दूसरों ने जिसका त्यागा। इस अनित्य राज्य में महान् लोग कीर्ति के लिये केवल धर्म का पालन करते रहें। 52 इसलिये उसने वायु तथा विद्युत के समान जीवन को चंचल तथा असार तथा पृथ्वीदान को परम पुण्यकारक मानकर इस ब्रह्मदाय (ब्राह्मण को दान) में वह नरेश प्रवृत्त हुआ। 53।
और वह परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीजगत्तुंग देव का चरणानुसेवी 58. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर पृथ्वीवल्लभ श्रीमान् अमोघवर्ष
श्रीवल्लभ नरेन्द्रदेव सकुशल, किसी भी तरह का सम्बन्ध रखने वाले सारे
विषयपति (जिलाधीश) 59. के युक्तक, नियुक्तक, अधिकारिक, महत्तर आदि को यह आदेश ज्ञात हो
आप को ज्ञात हो जैसा कि मान्यखेट राजधानी में रहते हुए मैंने माता, पिता
तथा स्वयं के इस लोक एवं परलोक 60. में प्राप्य पुण्य एवं यश की वृद्धि के लिये करहड से निकले भरद्वाज,
अग्निवेश्य, अंगिरस, बार्हस्पत्य गोत्र के तथा भरद्वाज गोत्र के सहपाठी
साविकूवारक 61. मइत पौत्र, गोलसहडगमि (षडंगवित्) का पुत्र, नरसिंह दीक्षित है जो पुनः
उस विषय (जिले) से निकला है। उसी गोत्र में भट्ट के पौत्र, गोविन्द
भट्ट के 62. पुत्र रच्छार(क्षा)दित्य क्रम विज्ञ है। उस देश में, वड्डमुख के सहपाठी
दावडिगहिय सहास के पौत्र, विष्णुभट के पुत्र, षडग के ज्ञाता 63. त्रिविक्रम और पुनः उस देश में वत्सगोत्र के सतीर्थ हरिभट्ट के पौत्र, गोवादित्यभट्ट के पुत्र केसवगहिय साहास को
तृतीय पत्र 64. जो चारों अनेक ऋक् शाखाओं से सम्बद्ध हैं। इस इस प्रकार इन चारों ब्राह्मणों
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