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प्राचीन भारतीय अभिलेख
42 लेती
39. शासन में नियुक्त स्वच्छन्द तथा परस्त्री, पुत्री, बहिन आदि में पशु के समान
भेद न मानने वाले पुरुषों का क्रुद्ध होकर शठता से पूर्ण मंत्रणा एवं मिथ्या शपथ लेकर वध कर डाला।
और इस प्रकार उस राजा ने कलि प्रभाव को समाप्त कर सदाचार का उद्धार किया। 39
विशाल महिमाशाली प्रकाश से युक्त आकाश में 41. उदय (उन्नति) भी महिमा प्राप्त करने वाले मंडल व तारे शोभित हुए परन्तु
इन्द्र ने इन्हें एकत्र कर कुटिल उन्नतिशीलों को अपने प्रताप में विलीन कर दिया। गुरु तथा बुध (विद्वानों) का अनुसरण कर रट्टमार्तण्डदेव ने उदयगिरि के समान महिमाशाली पातालमल्ल के साथ तेजस्वियों को प्रतिहत कर पुनः उदय पाकर वह अकेला जगत् को पवित्र कर रहा है। 41 उस सन्निपात (सम्यक् स्थानीय) से युक्त नृप के शासन में वे (शत्रु तथा बुराइयां) सब नष्ट हो गये क्योंकि राजा आत्मा, उसके सचिव मन, सामन्त वर्ग इन्द्रियां, वाक् आदि उसके विधिवत् सेवक इस प्रकार अपने विषय (देश) को देह में स्थापित कर भोगने में सक्षम हो गया। 42
(द्वितीय पत्र : पृष्ठ भाग) अपने पूर्वजों से परम्परागत सन्तापों में 44. जो (देह) दोषों को औषध के समान, धन को वायु के समान, सूखे इन्धन
को अग्नि के समान, अंधकार को सूर्य के समान 45. उसने कलिदोष विनष्ट कर धात्री सी विस्तृत चांदनी सी कीर्ति एवं चन्द्र
सी श्वेत छत्रकान्ति से वह शोभित है। 43 46. दण्ड के आघात से तरु से फल के समान वह अपने मण्डल (राज्य) से
मोती प्राप्त करता था। वराह के टोलों के समान हाथियों के झुण्ड उसके प्रासाद में दूर तक चले जाते थे। जिसके क्रोध की प्रचण्ड दावाग्नि से शत्रुओं के शरीर जलकर भस्म हो गये। तपकर भी जो शत्रु उसके सामने झुक गये उन्हें कृपा प्राप्त हो गयी। (यही नहीं) उन्हें अपार विभूति
43.
अग
47.
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