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अमोघवर्ष का संजान ताम्रपत्र
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दुष्टता से गंगा को विकृत करने वाले, श्रृंखलाबद्ध, कई मारे गये तथा अनुकूल मण्डलेश सेवक बना लिये गये। बेगार में नियुक्त वेंगी आदि के नरेशों ने जिसके बाह्यांगण की भूमि में धूल का वितान कर दिया। 33 अत्यंत अहित में निरत निरलस राजा तथा अमात्य सेना के द्वारा बन्दी बनाकर मूक तथा बधिर हेलापुर लाये गये। लंका से वहां के स्वामी की मूर्तियाँ काञ्ची लाकर जिसने शिवालय में कीर्तिस्तम्भ के समान स्थापित कर दी।
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33. अपनी पृथ्वी के भार के भरण में समर्थ उसकी कीर्ति तीनों लोक में व्याप्त
हो गयी। अनेक धर्म-कर्म से उत्पन्न एक पुत्र ने हमारे जन्म को सफल कर
दिया। अब किसलिये यहां (पृथ्वी पर) ठहरें यह सोचकर 34. निर्मल यश से सम्पन्न तथा पुण्य के सोपानमार्ग वाला वह प्रतिध्वनि से पूर्ण
(हाथीदांत से श्वेत) स्वर्ग के उतुंग प्रासाद का अपनी कीर्ति का अनुसरण करता हुआ चला गया। 35
अपने कुल के मनोरम बन्धुओं तथा 35. सारे लोक में व्याप्त कीर्ति से अमर पूर्वजों की संतति को, लोक सहित
कीर्ति को, त्राण देने के लिये, शत्रुओं का वधेच्छु तथा कलियुग के कलुष
का विनाशक, विद्वानों के द्वारा प्रशंसित चरित्र वाला श्रीसम्पन्न अमोघवर्ष 36. प्रशासन करने लगा। 36
विनम्र का उद्धार करने, रणक्षेत्र में शत्रुओं की जीतने, याचकों को प्रदान करने, सनातन सत्य का वहन करने में इस जैसा और कोई नरेश नहीं है। इस प्रकार कलियुग के दोषों के विनाशक उस इन्द्र जैसे नृप के प्रासाद के सामने सदा ढोल आदि गम्भीर व ऊंची आवाज में अर्थपूर्ण उद्घोष करते रहे।। सद्यः उपलब्ध राज्य के स्वामी, प्रभूतधर्म के समान प्रभावशाली उस नृप को पुनः सोलह राज्यों के समान सत् युग प्रारम्भ हुआ जानकर विषम मायावी कलियुग ने (नृप के) विश्वसनीय सामन्त, सचिव तथा बन्धुओं को क्षुब्ध कर (विद्रोही बना) दिया।
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