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प्राचीन भारतीय अभिलेख
नर्मदा उत्तर विन्ध्य की तलहटी में प्रतिराज्य (अधीनस्थ राज्य) स्थापित
करने के पश्चात् धर्मकार्य सम्पन्न करते हुए अपने अमिट पुण्य से 25. वह अपनी राजधानी लौट आया। 25
उसका पुत्र महाराज शर्वस्वामी हुआ जो भूमि का भावी स्वामी, मण्डलेश, महाराज तथा पृथ्वी का शिव था। 26
जिसके जन्मकाल भाग्यद्रष्टा (ज्योतिषियों) ने घोषणा की कि 26. हिमालय से सेतु पर्यन्त समुद्र मेखला पृथ्वी के भोक्ता के रूप में इसे
स्वीकार किया जायेगा। 27 अमोघवर्ष ने युद्ध में शत्रुओं के जिन सैनिकों को बन्दी बना लिया था तथा जो अब विकृत (वृद्ध) हो चुके थे उन्हें मृत्यु एवं कैद से मुक्त कर दिया।28
तब अपने सारे मनोरथों की विपुल वर्षा करते हुए 27. वह जगतुंग किंवा सुमेरु सारे भूभृतों (नृप अथवा पर्वतों से ऊपर स्थित
हुआ)। 29 द्रविड राजाओं के बढ़ते गर्व को नष्ट करने के लिये वह उद्यत हुआ, जिनका चित्त सतत जागरण, चिन्ता तथा मन्त्रणा से त्रस्त हो रहा था। 30
प्रस्थान के साथ 28. चल (उड) कर शौर्य साधन से शत्रुओं के स्वरूप (यश) पात्र को
कलंकित कर इसकी कीर्ति आच्छादित हो गयी, अपने शौर्यसाधन से शत्रुओं के शत्रु (अपने मित्र) का वह रक्षक हो गया।
हृदयलता सी लक्ष्मी भी पवन से झकझोरे खाती रही। 29. शत्रुओं का यशविस्तार तो नहीं फैला परंतु धूलि अवश्य (उन पर) छा
गयी।31 केरल, पाण्ड्य, चौल नरेशों को त्रस्त एवं पल्लवों को पल्लवित करते हुए; कलिंग तथा मगध को व्यथित करते हुए उन्नतिशील ने उन्हें मलीन कर
दिया। गरजते गुर्जरों के सिर पर 30. शौर्य-नाशक अलंकार (कडा) घुमाता हुआ अपने प्रयास से उस विक्रमशाली
सत् शौर्य से अपने शासन को निन्दा का भाजन नहीं बनाया। 32
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