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प्राचीन भारतीय अभिलेख
9. तब प्रभूतवर्ष और फिर धारावर्ष नरेश हुआ, जिसने रणक्षेत्र में बाणों से
धारासार वर्षा का दृश्य उपस्थित कर दिया। 12 युद्धों में जिसके खडग से कटे शत्रु-शिरों से गुनगुने स्वादिष्ट मधु-पान से
मदमत्त हो 10. आकण्ठ पेट भरने वाला, मृत्यु से संतुष्ट हो विराम लेता सा वह काहल
(प्रशस्त, गंभीर एवं) धीर नाद करता था। 13 गंगा-यमुना के दोआब में विनष्ट (पलायन करते) गौड राजा (राज) की
लक्ष्मी के लीलाकमल रूप श्वेत छत्रों को जिसने छीन लिया। 14 14. जिसकी चन्द्रमा की किरणों सी शुभ्र कीर्ति पृथ्वी के छोर तक व्याप्त हो
गयी। डोलते असंख्य शंखों मोती तथा सैंकड़ों चमकीली मछलियां, अनेक फेन तथा लहरों के रूप में समुद्र के दूसरे तीर पर जाती सी कीर्ति सतत
पार करती रही, 12. आकाशगामिनी दिव्य वाणी के वाहक (ऐरावत) हाथी, गंगा तथा हंसों के
रूप में स्वर्ग पहुंच गया। 15 जिस अनुपम पुत्र ने राज्याभिषेक होते ही, विनय कर याचना करने वाले सारे
सामन्त समूह को अपने अपने पद पर स्थापित कर दिया। 13. मन्त्रियों ने कहा-'तुम अपने पिता के समान हो।' क्योंकि वह धर्म
अर्थ-कामादि त्रिवर्गको सम्पन्न करने में दक्ष था। गंगा को पकड़ने के
पश्चात् छोड़कर पृथ्वी का पालन करता रहा।। 16 14. नीच शत्रु नृपों के समूह को अपने सेवक बनाने के पश्चात् रणक्षेत्र में युद्ध
करते हुए, बिगड़े वृषभ के समान उन सारे उग्र नृपों का वध कर (बचे हुओ को), हृदय से आर्द्र (करुण) होने से क्रोध शांत होने पर छोड़ दिया। जैसे
वाडवाग्नि शांत होने पर समुद्र तरल हृदय हो जाता है। जैसे किसी प्रकार 15. का मनमुटाव ही नहीं हुआ हो, उसने उन नृपों का भार पुनः स्वीकार कर
लिया। 17 जिसने कृतघ्न गंग के विद्रोह करने पर, प्रारम्भ में ही भागते हुए को बांधकर पैरों में जंजीरें डाल दी और यह दुष्ट है यह जानकर उसके गले को घोड़े
के समान बांध दिया। 18 16. यमराज का अन्य प्रतिनिधि श्री मान्धाता रमणीय उद्यान, नगर तथा गांवों में
फैलकर शोभित राष्ट्रकूट वंश की लक्ष्मी का सार,
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