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अमोघवर्ष का संजान ताम्रपत्र
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(अपार भोग विलास से युक्त) शेषनाग के निवासी, प्रताप तथा शील के उद्भव के लिये जो उदयाचल है वह, राष्ट्रकूट जैसे समुन्नत वंश के पूर्वज वीरनारायण नामक अद्वितीय नरेश हुआ (जो विष्णु सा था)। 2 उस वीर संरक्षित यादववंश में क्रमशः रत्नराशि की अभिवृद्धि के समान, पृथ्वी का श्रृंगार राजा गोविन्द हुआ जो पृच्छकराज का पुत्र था। 3 जिसने कौस्तुभरत्न की चमकती किरण से विस्तृत वक्षस्थल को धारण किया। जिस प्रकार प्रभात के बालसूर्य से उत्पन्न स्वर्णिम कान्ति-सरणि को मेरु अपने तटों पर धारण करता है। 4 (जिसके कारण) शत्रुओं के मन सदा त्रस्त रहते हैं, वचन जिसकी कीर्ति का प्रसार करते हैं, सिर जिसके चरणों में झुक गये हैं और यश जिसके प्रताप में जाकर लुप्त हो गया है। 5 उस अमित प्रभावशाली ने अपने धनुष से (सारे) नृप (तथा पर्वतों) को विनष्ट कर पृथ्वी (राज्य) को विस्तृत किया। उस प्रतापशाली स्वामी कर्कराट् ने अपने महान् ओज से शत्रुओं के अंधकार को चीर दिया। 6 तदनन्तर खेटकमण्डप में इन्द्रराज ने चालुक्यराज की कन्या को राक्षस विवाह से (अपहरण कर) ग्रहण कर लिया। 7 तब गजयूथ को रौंदने वाला, हिमालय से (श्रीराम की समुद्र) सेतु तक (अपने राजा की) सीमा बनाकर स्थित, प्रतापशाली राजसमूह को अपने अधीन करने वाला कुलश्रेष्ठ नृप दन्तिदुर्ग पृथ्वी पर हुआ। 8 जब अधीनस्थ नृपों ने उज्जयिनी में हिरण्यगर्भ यज्ञ किया तब जिसने गुर्जर के स्वामी प्रभृति नृपों को प्रतिहार (द्वारपाल) बनाया। 9 शुभतुङ्गवल्लभ ने रणाङ्गण के स्वयंवर में अनपेक्ष भाव से चालुक्यों की कुललक्ष्मी को बलपूर्वक आकर्षित कर लिया। जो मालाओं के भार वाली लहराती ध्वज पंक्ति से युक्त थी। 10 बिना युद्ध के ही सिंहासन तथा चंवर से शोभित, श्वेत छत्र से युक्त, शत्रुओं के राज्य को भोगने वाला, छोटे-बड़े राजाओं को नष्ट करने वाला, सारे पुण्य-कार्य करने वाला राजर्षि अकालवर्ष हुआ। 11
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