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प्राचीन भारतीय अभिलेख
वाला, अत्यंत दयालु तथा अनाथों का आश्रयदाता, स्नेहियों के लिये कल्पवृक्ष, भयभीत को अभयदान देने वाला तथा जनपद (अपने शासित क्षेत्र) का बन्धु था। 25 उसका पुत्र दृढ़ नीति से युक्त राजा बन्धुवर्मा हुआ; जो बन्धुजनों
का प्रियतथा 15. प्रजा के बन्धु के समान था, बन्धुओं के दुःख दूर करने वाला तथा शत्रुओं
और अभिमानी जनों के खेमे को नष्ट करने में वह अप्रतिम चतुर था। 26 यह बन्धुवर्मा देह से अभिराम, युवक, रणपटु तथा विनम्र था। राजा होते हुए भी अभिमान आदि दुर्गुणों से वह अछूता था। अलंकृत न होने पर भी वह शृंगार की मूर्ति सा सुशोभित होता था तथा रूप में वह द्वितीय कामदेव के समान (कमनीय) था। 27
जिसका स्मरण कर-वैधव्य के तीव्र दुःख से व्यथित, विशालाक्षी 16. शत्रु-वधुओं के पीन-पयोधर अब भी भय के कारण जोर से कांप (कर
थरथरा) उठते हैं। 28 नृपों में श्रेष्ठ, उदार तथा उन्नत स्कन्ध वाले उसी बन्धुवर्मा के शासन काल में इस दशपुर ने सुसमृद्धि प्राप्त की तथा कारीगरी से प्राप्त प्रचुर वित्त से श्रेणी में संगठित बुनकरों ने सूर्य का विशाल तथा अनुपम भवन बनवाया। 29 पर्वत के सदृश विस्तृत तथा उन्नत शिखर वाला, उदित होते चन्द्रमा की स्वच्छ किरण जाल सा शुभ्र एवं पश्चिमपुर अथवा दशपुर में लगी कान्त (रुचिर) चूडामणि के समान नयनाभिराम वह मन्दिर सुशोभित हो रहा है। 30 जिस ऋतु में सुंदरियों का सान्निध्य किया जाता है, (शीत) को विदारित करती सूर्य किरणें तथा अनल की गर्मी सुखद लगती हैं, मछलियां जल
में ही छिपी रहती हैं, चन्द्रकिरणें, प्रासाद की सतह (तल), चन्दन, 18. पंखें, हार आदि का उपभोग नहीं किया जाता है; सरोज हिम से जल जाते
हैं। 31 लोध्र तथा प्रियंगु के वृक्ष तथा कुन्द (चमेली) की लता के विकसित पुष्पों के आसव (पान) से प्रमुदित मधुप मधुर गुञ्जार करते रहते हैं तथा जिस काल में हिम-कण से तीखी एवं शीत वायु के वेग से एक शाखा वाली लवली तथा नगण लता नाचती रहती है। 32 काम के वशीभूत युवक अपनी प्रिया की पृथुल, मनोरम तथा मोटे
17.
पर्व
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