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तदनु
19. भृतासितरंगा श्रीमद्वाउकनृसिंघेन ॥ [ 29 ]
18. तचरणेनासिहस्तेन शत्रुं
छित्त्वा भित्त्वा श्मशानं कृतमति [ भ ]यदं बाउकान्येन
तस्मिन् [ 28 ] नवमण्डलनवनिचये भग्ने हत्वा मयूरमतिगहने ।
21. शकलान्त्रेष्वेव विन्यस्तपादे ।
2.
20. यच्छ्रीबाउकमण्डल ]|ग्ररचितं प्राक्छत्रुसंघाकुले तत्संस्मृत्य न कस्य संप्रति भवेत्रासोद्गमश्चेतसि [1] [30] ननु सम्[र]धारायां बाउके नृत्यमाने
शवतनु
3.
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सार्द्धाद्धैः प्रग [ल ] द्भिरक्त सुषिरैव्वा हूरु पादाङ्गकैरेन्द्रैश्चोपरिलम्वि(म्बितैर्विरचितं शवगृहं फेत्कारसत्त्वाकुलं
प्राचीन भारतीय अभिलेख
शममिव हि गतास्ते तिष्ठतिष्ठेति गीता
22. उत्कीर्णा च हेमकारविष्णुरविस [] नुना कृष्णेश्वरेण ॥ ओम् । विष्णु को प्रणाम ।
1.
द्भयगतनृक [] रंगाश्चित्रमेतत्तदासीत् ॥ [31] सं0 894 चैत्र शु दि 5
जिसमें (समस्त) भूत विलीन, उत्पन्न तथा स्थित होते हैं, तथा जो निर्गुण एवं सगुण है वह हृषीकेश आपकी रक्षा करे। 1
पूर्व पुरुषों के गुणों का विद्वान् इसलिये बखान करते हैं।
जिससे गुणों की कीर्ति अविनष्ट होकर स्वर्ग में निवास करे। अतः मेधावी श्री बाउक ने अपने प्रतिहार वंश में उत्पन्न सम्पन्न, यशस्वी तथा विक्रमशाली (नृपों) को प्रशस्ति में लिखवाया। 3
रामचन्द्र के अपने भाई (लक्ष्मण)
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प्रतिहार कर्म किया इसलिये वैभव सम्पन्न इस प्रतिहार वंश ने उन्नति प्राप्त की। 4