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प्राचीन भारतीय अभिलेख (प्रशंसनीय) है। सामने आये हुए शत्रुओं के वध में भी वह अप्रतिहत (प्रतिरोध) है (और इसीलिये उसे विष्णु समझकर) लोग प्रणाम करते हैं। 17 "युद्ध में मैंने दुर्दान्त शत्रुओं का सफाया कर दिया। इसके अतिरिक्त मेरे करने योग्य कुछ नहीं।" यही विचारकर श्रीहर्षदेव से सन्धि की इच्छा से (उसके समक्ष प्रस्तुत हुआ) 18
शत्रुओं के गजराज के सिर के मोतियों के 16. चूर्णसमूह से सारा वातावरण धूमिल करने वाला, राजाओं में श्रेष्ठ, आदित्य
सेन नामक उसका श्रीमान् पुत्र हुआ। 19 जिसे शत्रुओं के विनाश से प्रशंसनीय अक्षय कीर्ति सारे धनुर्धरों के समक्ष सुलभ हुई। अतः चिरकाल तक अनेक बार प्रशंसाभरित आशीर्वाद उसे सतत प्राप्त होते रहे। 20
युद्ध में पसीने के व्याज से 18. पताका के पटाञ्चल से दान की क्लिन्नता (दान के कीचड़) को पोंछते हुए,
खड्ग के मारक आघात से गज (कुम्भ) के मोतियों के टुकड़ों से जिसने रेतीला कर दिया। जिसकी गन्ध से आकृष्ट होकर, अमिट सुवास से भ्रान्त मत्त भ्रमर का समूह ही आ गया। 21 भयंकर तथा विकट भौंह से कठोर (प्रतीत होने वाला वह) संग्राम (में शत्रुओं को त्रस्त करता रहता था)। परंतु अपने स्नेही तथा सेवकों की गोष्ठी
(मण्डली) में 20. (अपनी चतुराई, चालाकी अथवा सुकुमारता से) मज़ाकी था। 22
सत्य प्रिय स्वामी के प्रति भक्त, जिसके मुख का आश्रय लेकर तपस्या करने वाली परिहास वृत्ति पूर्णकाम हो गयी। 23
सारे शत्रुओं के सैन्य को विनष्ट करने में सक्षम 21. तीखे क्षयकारक आघात के श्रम से उत्पन्न जड़ता से जिसका प्रताप भव्य
___ हो उठा है। समर में मदमत्त हाथी के सिर (पर आघात कर उस) नरेश से · श्वेत छत्र के तले सारे भूमण्डल (के राज्य) को समेट लिया था। 24
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