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प्राचीन भारतीय अभिलेख
53. यह हमारा दान समझकर (उसका) पालन करे। जो अज्ञानान्धकार पटल से
आवृत्त मति वाले (इस दान को तोड़ते) 54. अथवा तोड़ने का अनुमोदन करते है, ऐसे व्यक्ति पांच महापाप तथा उपपाप
से युक्त होते हैं-ऐसा कहा है, भगवान् 55. वेदव्यास ने
भूमिदाता साठ सहस्र वर्ष तक स्वर्ग में रहता है। (तथा) उसका छेदन या
(छेदन का) अनुमोदन करने वाला उतने ही वर्ष नरक 56. में रहता है।
तथा निर्जल विन्ध्य-वन के सूखे कोटर में रहने वाले कृष्णसर्प (के रूप
में) उत्पन्न होते हैं, जो भूमिदान का 57. अपहरण करते हैं। 27
अग्नि की प्रथम संतति सुवर्ण, विष्णु की पुत्री पृथ्वी तथा सूर्य की पुत्रियां
गायें हैं। 58. जो स्वर्ण, गो एवं पृथ्वी देता है, वह तीनों लोक दे देता है। 28
सागर आदि अनेक नृपों ने भूमि भोगी। जब जिसकी 59. जिसकी भूमि (रही) तब उसे ही फल मिला। 29
यहां प्राचीन काल में जिन नृपों ने धर्म, अर्थ तथा यशस् कारक जो दान दिये 60. निर्माल्य के समान उन्हें कौन सज्जन फिर से लेगा। 30
राजन्! स्वयं अथवा अन्य के द्वारा प्रदत भूमि की सप्रयास रक्षा कर। 61. हे नृपश्रेष्ठ! दान की अपेक्षा उसका अनुपालन श्रेष्ठ है। 31
इस प्रकार कमलपत्र के जलबिन्दु के समान चञ्चल लक्ष्मी तथा मानव
जीवन स्थिति विचार कर 62. अत्यंत विमल मन वाले आत्मीय जन परकीर्ति को (दान छीनकर) लुप्त
न करें। 32
श्रीनाग63. पराणक दूतक ने श्रीगौड़ के पुत्र श्रीसामन्त ने (यह दानपत्र) लिखा।
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