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धारावर्ष ध्रुवसेन के भोर राज्य संग्रहालय ताम्रपत्र
40. परलोक में पुण्य तथा यश की वृद्धि के लिये करहाड निवासी चारों विद्या दे निष्णात गार्ग गोत्र के
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41. अनेक ऋचाओं (ऋग्वेद) के ज्ञाताओं के सहपाठी दुर्गभट के पुत्र, अंग तथा उपांग सहित वेद के अर्थ एवं तत्त्व के विद्वान् वासुदेवभट्ट को
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42. श्रीमाल विषय के अन्तर्गत लघुविंम नामक ग्राम, उसकी सीमा (पर्यन्त दिया जाता है जिसके ) पूर्व में श्रीमाल नगर,
43. दक्षिण में लयणगिरि, पश्चिम में बृहद् विंगक ग्राम, उत्तर में नीरा नामक नदी - इस प्रकार इस चतु:सीमा
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44. से सूचित ग्राम, उद्रंग तथा परिकर सहित, दण्ड, दश अपराध, भूत, वात, प्रत्याय, उत्पन्न होने वाली
45. बेगार, धान्य, स्वर्ण आदि, (इसे) प्राप्त हो । चाट तथा भट का प्रवेश न हो। सारे राजकीय (अधिकारियों) का हस्तक्षेप न हो।
47.
46. चन्द्र-सूर्य - समुद्र - पृथ्वी नदी पर्वत की स्थिति पर्यन्त, पुत्र-पौत्रादि वंश क्रम में भी पूर्व से देव
48.
(अथवा ) ब्राह्मण को दान न की हुई, अन्तः सिद्धि से, भूमिछिद्र न्याय से शक नृप के काल (अनुसार) वर्ष'
702 व्यतीत होने पर सिद्धार्थ वर्ष में माघ शुक्ल रथ सप्तमी के ।
(तृतीय पत्र)
49. महापर्व पर बलि, चरु, वैश्वदेव, अग्निहोत्र, अतिथि (आदि) पञ्चयज्ञ - 1 - क्रिया सम्पन्न करने के लिये, स्नान करके जल छोड़ते हुए
50.
( यह दान) सम्पन्न किया। जिससे इसकी उचित ब्रह्मदाय स्थिति रूप से भोग करता तथा करवाता हुआ, जोतता एवं जुतवाता हुआ, प्रत्येक दिशा से कोई
51. किञ्चित् भी बाधक न बने। तथा हमारे वंश के अथवा अन्य आगामी भद्र नृप भी भूमिदान के फल को सामान्य
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52. समझकर, ऐश्वर्य को बिजली के समान अनित्य तथा जीवन को तिनके के अग्रभाग पर लगी जलबिन्दु के समान चञ्चल समझकर अपने से अभिन्न