SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धारावर्ष ध्रुवसेन के भोर राज्य संग्रहालय ताम्रपत्र 40. परलोक में पुण्य तथा यश की वृद्धि के लिये करहाड निवासी चारों विद्या दे निष्णात गार्ग गोत्र के www. kobatirth.org 41. अनेक ऋचाओं (ऋग्वेद) के ज्ञाताओं के सहपाठी दुर्गभट के पुत्र, अंग तथा उपांग सहित वेद के अर्थ एवं तत्त्व के विद्वान् वासुदेवभट्ट को Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 42. श्रीमाल विषय के अन्तर्गत लघुविंम नामक ग्राम, उसकी सीमा (पर्यन्त दिया जाता है जिसके ) पूर्व में श्रीमाल नगर, 43. दक्षिण में लयणगिरि, पश्चिम में बृहद् विंगक ग्राम, उत्तर में नीरा नामक नदी - इस प्रकार इस चतु:सीमा 213 44. से सूचित ग्राम, उद्रंग तथा परिकर सहित, दण्ड, दश अपराध, भूत, वात, प्रत्याय, उत्पन्न होने वाली 45. बेगार, धान्य, स्वर्ण आदि, (इसे) प्राप्त हो । चाट तथा भट का प्रवेश न हो। सारे राजकीय (अधिकारियों) का हस्तक्षेप न हो। 47. 46. चन्द्र-सूर्य - समुद्र - पृथ्वी नदी पर्वत की स्थिति पर्यन्त, पुत्र-पौत्रादि वंश क्रम में भी पूर्व से देव 48. (अथवा ) ब्राह्मण को दान न की हुई, अन्तः सिद्धि से, भूमिछिद्र न्याय से शक नृप के काल (अनुसार) वर्ष' 702 व्यतीत होने पर सिद्धार्थ वर्ष में माघ शुक्ल रथ सप्तमी के । (तृतीय पत्र) 49. महापर्व पर बलि, चरु, वैश्वदेव, अग्निहोत्र, अतिथि (आदि) पञ्चयज्ञ - 1 - क्रिया सम्पन्न करने के लिये, स्नान करके जल छोड़ते हुए 50. ( यह दान) सम्पन्न किया। जिससे इसकी उचित ब्रह्मदाय स्थिति रूप से भोग करता तथा करवाता हुआ, जोतता एवं जुतवाता हुआ, प्रत्येक दिशा से कोई 51. किञ्चित् भी बाधक न बने। तथा हमारे वंश के अथवा अन्य आगामी भद्र नृप भी भूमिदान के फल को सामान्य For Private And Personal Use Only 52. समझकर, ऐश्वर्य को बिजली के समान अनित्य तथा जीवन को तिनके के अग्रभाग पर लगी जलबिन्दु के समान चञ्चल समझकर अपने से अभिन्न
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy