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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 212 www. kobatirth.org प्राचीन भारतीय अभिलेख 30. पहुंच रहा था तथापि जिसने अपने भाई से मनमुटाव नहीं किया। 21 साम आदि (उपयों) से भी जब वल्लभ ने संधि नहीं की 31. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तब उसने रण में समागत भाई को जीतकर तत्काल (उसके समर्थक) नृपों पर भी विजय प्राप्त कर पूर्वी, उत्तरी तथा पश्चिमी प्रदेशों पर लहराती ध्वज- पंक्तियों से 32. शोभित चिह्नों से जिस महेन्द्र विभु ने सम्पूर्ण (भूमि पर ) स्वामित्व प्राप्त किया। 22 चन्द्रकिरण के समूह के समान जिसका यश सुमेरु पर्वत द्वितीय पत्र : पृष्ठ भाग 33. के समुन्नत शिखर पर स्थित अनुरक्त विद्याधर - ललनाओं के द्वारा गाया जाता है। 23 जो प्रसन्न होने पर सारे अर्थिजनों को सब कुछ देखकर उनके बन्धुवर्ग को भी प्रसन्न कर देता था 34. परन्तु वह अपरिमित बलशाली रुष्ट होने पर वेग से यमराज के भी प्राण हर लेता था। 24 उसने जीवन को वायु तथा विद्युत् के समान चञ्चल 35. तथा सारहीन देखकर, परमपुण्य से युक्त भूमिदान के रूप में ब्राह्मणों को दान किया। 25 और उस परमभट्टारक महा 36. राजाधिराज परमेश्वर परमभट्टारक श्रीमान् अकालवर्षदेव के चरणानुवर्ती परमभट्टारक 37. महाराजाधिराज परमेश्वर श्री धारावर्ष श्री ध्रुवराज नामक श्री निरूपमदेव कुशलता पूर्वक सभी 38. यथा सम्बद्ध राष्ट्रपति, विषयपति, ग्रामकूट, आयुक्तक, नियुक्तक, आधिकारिक, महत्तर आदि को आदेश 39. देता है - आपको ज्ञात हो कि श्री तथा नीरा नदी के संगम पर रहते हुए मैंने -पिता तथा अपने इस लोक तथा माता For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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