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आदित्यसेन का अफसड शिलालेख
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24.
22. युद्ध में मत्त गजराज का सिर चीरकर शंसा पाने वाली दोनों भुजाओं से अनेक
शत्रुओं के तेज को नष्ट कर जिसने (अपरिमित) यश प्राप्त किया। अनेक
नृपों के सिर पर पैर रखने से उस नृप की प्रतापग्नि प्रज्ज्वलित हो गयी थी। 23. वह श्रीसम्पन्न था तथा उसने युद्ध सम्बन्धी अहंकार (कर सकने) की
विख्यात कीर्ति अर्जित कर ली थी। 25 शरत्काल के चन्द्रमा के बिम्ब सी श्वेत, सारे भूलोक में प्रथित उस श्रीमान् से मिलन की अभिलाषिणी विचित्र विपुल कीर्ति से चिरकाल से सौतिया डाह के कारण रूठकर शत्रुनारियाँ सागरपार चल गयीं उसी नरेश
ने विष्णु के लिये श्रेष्ठ भवन (मंदिर) बनवाया। 26 25. उसकी माता महादेवी श्रीमती ने स्वर्गीय भवन के समान (दिव्य तथा
भव्य) मठ बनवाकर धार्मिकों को स्वयं प्रदान किया। 27 शंख, चन्द्रमा तथा स्फटिक की कान्ति के समान अत्यंत चमकीली बूंदों वाले, मगर के चलने से चलती तरंगों पर शोभित पक्षी जिसमें नाचते से प्रतीत होते हैं, तथा जिसका जल लोगों की तृषा शान्त करता है ऐसा अद्भुत तालाब उसी नृप की तपस्विनी प्रिय भार्या कोणदेवी ने कठोर परिश्रम से खुदवाया। 28 जब तक शिव के सिर पर चन्द्रकला, विष्णु के वक्ष पर लक्ष्मी, ब्रह्मा के मुख में सरस्वती, ... शेष नाग के फण पर पृथ्वी तथा बादल के उदर में बिजली विराजमान है तब तक राजा आदित्यरोल यहां शुभ्र कीर्ति फैलाता रहे। 29
धार्मिक तथा मेधावी, सूक्ष्मशिव गौड ने इस विकट वर्णों वाली (अक्षय) 28. प्रशस्ति का निर्माण किया। 30
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