________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धारावर्ष ध्रुवसेन के भोर राज्य संग्रहालय ताम्रपत्र
209
3
(प्रथम पत्र) 1. ओम्।
जिसके नाभिकमल को विधाता ने अपना धाम बनाया वह (विष्णु) तथा जिसकी कमनीय चन्द्रकला से कमल रूप-धाम बनाया वह हर आपकी रक्षा करे। 1 रणनिशा में शत्रु-अंधकार को अपने मण्डल के अग्रभाग (सीमा तथा प्रभामण्डल) पर विनष्ट करते हुए, नृपों में राजसिंह गोविन्दराज नरेश ने चन्द्रमा के समान दिगन्तव्यापी पवित्र कीर्ति प्राप्त की। 2 इसने सामने आयी हुई सुभटों के अट्टाहास से पूर्ण सेना को अचानक नित्य
ही रण में देखकर 4. (क्रोध से) अधर काटते हुए; ललाट पर भुकुटि, खड्ग, कुल, हृदय तथा
अपना सत्त्व (बल) धारण किया। 3 5. महायुद्ध में जिसके नाम को सुनकर शत्रुओं के असमय ही ये तीनों गिर जाते
हैं-हाथ से खड्ग, मुख से शोभा तथा मन से मान। 4 जगत् में प्रसिद्ध एवं विस्तृत कीर्तिशाली, दु:खी-जनों के दुःख को हरण करने वाला, विष्णु सा बलशाली कृतज्ञ देवेन्द्र के समान राजा श्रीकर्कराज गोत्रमणि : गोत्र में मणि के समान) हुआ। 5 उसका पुत्र राष्ट्रकूट में सुमेरु के समान, इन्द्रराज, पृथ्वी का राजा हुआ। विशीर्ण गण्डस्थल से टपकते मदजल से युक्त गजों के दन्तप्रहार के लोहित से जिसका कन्धा रञ्जित था तथा जिसने शत्रुओं को (उखाड़) फेंका था। 6 उसका पुत्र शतक्रतु के समान श्री दन्तिदुर्गराज हुआ जिसने यज्ञोत्सव सम्पन्न
किया तथा जो चारों समुद्र की वलयमालिनी भूमि का भोक्ता था। 7 10. काञ्ची के स्वामी, केरल के राजा; चोल, पाण्ड्य, श्रीहर्ष, वज्रट आदि को
नष्ट करने में वह पटु था तथा अन्य जिसे जीतने का विचार भी नहीं कर सकते थे उस कर्णाटक-सैन्य को जिसने
For Private And Personal Use Only