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प्राचीन भारतीय अभिलेख
11. अपने कतिपय सेवकों से हा सहसा जीत लिया। 8
बिना भ्रूभंग किये, बिना तीखा शस्त्र लिये, बेरोक, अबाध आदेश से, बिना प्रयत्न के ही जिसने तत्काल दण्डबल से वल्लभ को जीतकर 'राजाधिराजपरमेश्वर' विरुद प्राप्त किया। 9
विशाल 13. पाषाण-समूह से शोभित चञ्चल तरङ्गावली से युक्त सेतु से हिमांकित
विकल शिलासमूह से युक्त हिमालय तक, पूर्व तथा पश्चिम 14. समुद्र-तटों के प्रथित प्रदेश तक जिसने अपने विक्रम बल से इस जगती को
एक छत्र में (के नीचे) कर दिया। 10
उस वल्लभराज के दिवं15. गत होने पर श्रीकर्कराज का प्रजा के कष्टों को दूर करने वाला पुत्र कृष्णराज
नृपति हुआ। 11 जिसने
(द्वितीय पत्र, मुख भाग)
17.
16. अपनी भुजाओं के पराक्रम से सम्पूर्ण शत्रु-दिक्-समूह को विनष्ट कर
दिया, उस कृष्णराज का कृष्ण के समान अकष्ण (शुभ्र, उज्ज्वल) चरित है। 12 शुभ (लक्षणों से युक्त) ऊंचे अश्वों (की गति) से प्रवृद्ध रेणु से ऊंचाई पर रविकिरणों को रोक लिया (फलतः) ग्रीष्मकाल में भी सम्पूर्ण आकाश स्पष्ट ही वर्षाकाल सा प्रतीत होने लगा। 13 दीन, अनाथ तथा स्नेहियों पर उनकी इच्छानुरूप कामनापूर्ति हेतु तत्काल, अकाल वर्ष (वर्षा का समय न होने पर भी) बरसकर सब को अत्यंत उपहार देता था। 14
अपने भुजबल पर गर्व होने पर राहप्प को 19. तीक्ष्ण खड्गलता के प्रहार से जीतकर शुभ जिसने तत्काल राजाधिराज
परमेश्वरत्व को व्यक्त करने वाली ध्वजपंक्ति फैलायी। 15
18.
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