________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
190
प्राचीन भारतीय अभिलेख
2.
3.
4.
5.
अंधकार से रहित चन्द्रमा जिस प्रकार सागर से उत्पन्न हुआ। उसी प्रकार उससे, उसका पुत्र श्रीहर्षगुप्तदेव उत्पन्न हुआ। 2 जो अकाल को भी अनायास समाप्त करने में समर्थ था तथा अपने दृढ़ धनुष से भीषण बाणवर्षा करता रहता था। अपने स्वामी की राज्यलक्ष्मी में बसने वाले विमुख पञ्चभूतों ने भी अत्यंत स्नेह से जिसे आंसूभर कर देखा। घनघोर युद्ध में भी चित्राङ्कित के समान उसने वक्षस्थल पर भयंकर शस्त्रों के आघात से कठोर घाव की गांठों की आकृति के बहाने प्रशंसनीय विजय प्राप्त की। 3 उसका पुत्र नृपवर श्रीविजितगुप्त हुआ जो गर्वशील शत्रुओं की नारियों के मुख-कमल के वन के लिये चन्द्रमा था। 4 मोती समान स्वच्छन्द जलप्रवाह से शीतल स्थानों पर, समुन्नत ताड़वन में घूमते हाथियों की सूंड से तोड़े गये केले के तनों वाले तटों पर तथा अबाध बर्फ लाने वाले निर्झर के जल से शीतल शैल पर स्थित होने पर भी शत्रुओं को इसके प्रबल प्रताप का ज्वर नहीं छोड़ता। अब भी जनसमूह जिसके मानवातीत कर्मों को आश्चर्य से देखता है, हनुमान के समान कोशवर्द्धन (पर्वत, कोश बढ़ाने) की सीमा लांघ गया। 6 हर ने कार्तिकेय को उत्पन्न किया उसी प्रकार उसने एक पुत्र, राजा श्रीकुमारगुप्त उत्पन्न किया; प्रत्यक्षयुद्ध में जिसकी शक्ति सुविख्यात थी। 7 फूत्कार वायु से सहज डोलती कदलियों को लहराने वाला तथा धूल एवं जलसमूह उड़ाने वाले विशाल मदमत्त गजों के भ्रमण करने का जो भयंकर पर्वत है तथा जो राजा श्री ईशानवर्मा रूपी चन्द्रमा की सैन्य समह रूपी क्षीरसागर को मन्दराचल बन मथकर सहसा लक्ष्मी पाने वाला है। 8 जो शौर्य एवं सत्य का व्रत धारण कर। 8 पुष्पों से पूजित होकर प्रयाग जाकर सघन जल में जैसे कण्डों की अग्नि में डूब गया। 9 उस नरेश का पुत्र श्रीदामोदरगुप्त हुआ। जिस प्रकार दामोदर ने दैत्यों का वध किया उसी प्रकार उसने शत्रुओं का वध किया। 10
For Private And Personal Use Only