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बाउक का जोधपुर शिलालेख
185 17. बाउक के अतिरिक्त और किसके राजाओं पर शासन छोड़कर सचिव आदि
सभी भाग गये, किस अकेले ने अत्यंत भीत दशों दिशाओं में स्वयं को
शक्ति में स्थिर किया। धैर्य से घोड़े की पीठ छोड़कर धरती पर 18. पैदल ही हाथ में तलवार लिये शत्रु को छिन्न-भिन्न कर वहां (राह में)
अत्यंत भयंकर श्मशान, बाउक के अतिरिक्त और किसने बनाया? 28 अत्यंत गहन नवमण्डल के नवनिचय के भग्न होने पर मयूर को मार ने के
पश्चात् 19. श्रीमान् बाउक नृसिंह ने असित तरंगों को प्राप्त (पूर्ण) की। 29
आधे आधे लटकते हुए, रक्त रहित बाहु, जंघा, पैर आदि अंगों तथा लटकती हुई आंतों से रचित शवगृह हो गया तथा जो (कुत्ते, भेडिये, फेकरी आदि) फेत्कार प्राणियों से भरा है।
श्री बाउक ने मण्डल में पहले शत्रुसंघ में जो कार्य किया उसे स्मरण कर ___ अब किसके हृदय में त्रास (भय) उत्पन्न नहीं होता। 30
शव के शरीरों के टुकड़ों एवं आंतों पर पैर रखते हुए बाउक के रणक्षेत्र में
नृत्य करने पर 21. ठहर-ठहर कहे (गाये जाने पर वे पुरुष-मृग डर कर शांत हो गये, यह
(कार्य) आश्चर्यकारी था। 31
संवत् 894 चैत्र शुक्ल दि 5 22. और स्वर्णकार विष्णुरवि के पुत्र कृष्णेश्वर ने (यह प्रशस्ति) उत्कीर्ण की।
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