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प्राचीन भारतीय अभिलेख
विद्युत रूपी पताका तथा गर्जन से युक्त आकाश के छोर तक फैले हुए बादलों से भी आकाश कभी भौंरों सा काला (शत्रु-समूह से मलिन) हो सकता है? जब कि वेग से झंझावात चल रही हो। 16 समय पाकर भैमरथी के उत्तरी प्रदेश को जीतने के लिये हाथियों के समूहों के साथ आप्पायिक तथा गोविन्द के (एक साथ) आने पर जिस पुलकेशी की सेना से युद्ध में भयभीत होकर एक (आप्पायिक तो) पलायन कर गया तथा दूसरे (गोविन्द) ने तत्काल उपकार का फल पाया (अर्थात् उपहार
सहित सन्धि अथवा शरण के लिये प्रस्तुत होने पर अभयदान पाया) 17 9. __ वरदा (वर्धा) की उत्तुंग तरंग रूपी रंगमंच पर (विलास करती) शोभित
हंसपंक्ति रूपी करधनी वाली 'वनवासी' नगरी सम्पत्ति में अमरावती (सुरपुर) की स्पर्धा करने वाली थी, उसे कुचल कर जिसके महत् सैन्य-सागर ने सारे भूमिभाग को चारों ओर से घेर लिया। उस काल देखते ही देखते उसका स्थलदुर्ग जलदुर्ग बन गया। 18 गंग तथा आलुप वंश के राजा, द्यूत आदि सात व्यसनों को त्याग कर पूर्व उपार्जित सम्पत्ति से सम्पन्न होने पर भी जिसके प्रभाव से उपनत होकर सदा
समीप रहते 10. हुए उसकी सेवा रूपी अमृत के पाने में लीन रहने लगे। 19
जिसके आदेश से प्रचण्ड सैन्य-जल की लहरों ने अपने वेग (शक्ति) से कोंकण के मौर्य रूपी क्षुद्र जलाशय की जल-श्री को विनष्ट (समाप्त) कर दिया। 20 शिव के समान जिसने पश्चिम (अरब) सागर की समृद्ध नगरी को अपनी मदमस्त हाथियों सी विशाल सैकड़ों नौकाओं से कुचल देने पर, मेघसमूह की सेना से अभिव्याप्त, नव-जलज की कान्ति वाले (नील) जलनिधि के
समान आकाश तथा आकाश के समान 11. जलधि हो गया। 21
1. 2.
झंझा झकोर गर्जन था बिजली थी नीरदमाला।-जयशंकर प्रसादकृत-आँसू। सप्त व्यसनानि वाग्दण्डयोश्च पारुष्यमर्थदूषणमेव च। पानं स्त्री मृगया द्यूतं व्यसानि महीपतेः।। कामन्दकीय नीतिसार, 14/61
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