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चालुक्य पुलकेशी द्वितीय का ऐहोल शिलालेख
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जिसके प्रताप के समक्ष लाट, मालव तथा गुर्जर भी झुक गये तथा दण्ड (बल) से विनत सामन्तों के आचरण के आदर्श के समान हो गये। 22 असीम सम्पत्ति से समृद्ध सामन्तों के समूह की चूडामणि की किरणोंसे जिसके चरणकमल रञ्जित रहते थे, युद्ध में गजसेना के विनष्ट होने से
आतंकित उसी हर्ष को जिसने भय से हर्ष-हीन (दुःखी) बना दिया। 23 12. उसक विशाल सेना से पृथ्वी का शासन करते समय, नर्मदा के तटों की
विपुल शोभा से सम्पन्न विन्ध्य का अञ्चल अपनी श्रेणियों के समान शरीर वाले (पुलकेशी के) हाथियों के (प्रवेश) त्याग द्वारा अपने महिमाशाली प्रताप से और भी अधिक सुशोभित हुआ। 24 इन्द्र के समान वह (पुलकेशी) समुचित रूप से संगठित तीनों (प्रभु, मन्त्र एवं उत्साह) शक्ति तथा श्रेष्ठ कुलीनता आदि अपने गुण-गणों से 99000
ग्राम वाले तीनों महाराष्ट्रों के स्वामियों का अधिपति हो गया। 25 13. अपने गुणों से गृहस्थों में त्रिवर्ग (धर्म, अर्था तथा काम) के पालन के कारण
समुन्नत अन्य नृपों का दर्प चूर करने वाले कोसल तथा कलिंग के राजाओं में भी जिसकी सेना से भय के चिह्न दिखाई देने लगे। 26 जिसने पिष्टपुर (उत्तरी गोदावरी जिले के पिठापुरम्) को पीस (कुचल) डाला जिससे वहां का दुर्ग (टूट जाने से अथवा विजित होने से) सुगम हो गया। आश्चर्य है कि जिस कलियुग में जो वृत्तांत सुगम था (पुलकेशी के शासनकाल में) अब दुर्गम हो गया। 27 (युद्ध के लिये) उधत गजसमूह से जिसका मध्य भाग व्याप्त है, विविध आयुध के घाव से मनुष्यों के रक्त के अङ्गराग से जो युक्त है, ऐसे कुनाल
(जलाशय) का रक्तिम आलोडित जल 14. मेघों से युक्त सान्ध्यलालिमा से (रंजित) गगन सा लगता था। 28
डोलते तथा फहराते सैकड़ों स्वच्छ चामर तथा पताका के अंधकार से, वीरता तथा उत्साह के रस से मत्त होकर (उद्धत) शत्रुओं का विनाश करने वाले मौल आदि छः प्रकार के बल (सैन्य) से', अपनी आक्रामक शक्ति की उन्नति की प्रतीक सैन्य धूल से ढककर पल्लवाधीश के प्रताप को मौलं भृतं सुहृच्छेणीद्विषदाटविकं बलम्। षड्विधं बलं...।कामन्दकीय नीतिसार, 19/6
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