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चालुक्य पुलकेशी द्वितीय का ऐहोल शिलालेख
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आकृष्ट कर ही लिया। 9 रणभूमि में अपने पराक्रम से जयलक्ष्मी पाने वाले नृपतियों में गन्धगज (मदमस्त श्रेष्ठ हाथी) के समान जिसने अपनी अमित शक्ति से विशाल कदम्ब वंश रूपी कदम्ब वृक्ष के समूह को समूल सहज ही विनष्ट कर दिया। 10 देवेन्द्र सी विभूति की अभिलाषा वाले उस कीर्तिवर्मा के दिवंगत होने पर उसका अनुज, मंगलेश राजा हुआ। जिसने पूर्व तथा पश्चिम सागर के तटों पर पड़ाव डाल कर अश्वसेना (के प्रयाण) से उड़ी धूल से (दोनों समुद्र पर्यन्त उन) दिशाओं में शामियाना (वितान) तान दिया। 11 चमकती किरणों वाली सैकड़ों तलवार रूपी दीपिकाओं से गज रूपी अंधकार के समह को विनष्ट कर, उसने रण रूपी रङ्गमहल में 'कटच्छुरि' (कलचुरि) वंश की राजलक्ष्मी रूपी ललना से पाणिग्रहण कर लिया। 12
और भी रेवती द्वीप जाने के इच्छुक उस मंगलेश की अनेक मनोरम ध्वजों वाली सेना ने वहां के दुर्ग का शीघ्र घेरा डाल दिया। विशाल समुद्र में जिसके प्रतिबिम्ब से प्रतीत होता था मानो उसके आदेश पर एक बारगी वरुण की सेना ही आ गयी हो। 13 उसके अग्रज (कीर्तिवर्मा) के नहुष से प्रतापशाली पुत्र पुलकेशी (द्वितीय) की लक्ष्मी ने जब चाह की तब अपने चाचा (मंगलेश) को अपने प्रति ईर्ष्यालु तथा स्वयं के आचरण, कार्यकलाप तथा विचारों पर प्रतिबन्ध जानकर वह प्रतिकार या विद्रोह की तैयारी करने लगा। 14 (जन्म से ही प्रभुशक्ति से सम्पन्न) पुलकेशी ने जन्म तथा उत्साह शक्ति का आकलन कर उनके प्रयोग से मंगलेश की सम्पूर्ण विशेष शक्ति विनष्ट कर दी। अपने पुत्र को राज्य देने के लिये आरम्भ किये गये यत्न के साथ ही उसने अपने विस्तृत राज्य तथा प्राणों का त्याग कर दिया। 15 उस (मंगलेश) के छत्र (राज्य) भंग होने पर सारा जगत् शत्रु रूपी अंधकार से अवरुद्ध हो गया, परन्तु पुलकेशी के प्रचण्ड (असह्य) प्रताप से मानो अन्धकार को आक्रान्त (आक्रमण में पराजित कर उसे पार) कर प्रभात हो गया। अथवा नाचती हुई
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