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प्राचीन भारतीय अभिलेख
श्रुति से पवित्र मनवाला, सुदृढ़ स्थिति वाला, बलवान्, खिले ( विकसित) यश के कुसुमों का उद्गम-वृक्ष, गुणों से जगविख्यात कुल में श्रेष्ठ उसका पुत्र विभीषणवर्द्धन हुआ ।। 9।।
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सूर्य के समान जिसने सीधे प्रकट होते, विकसित होते, अबाध फैलते, शुभ चढ़तीं बढ़ती सुचरित की किरणों से संसार को अन्धकार-रहित कर दिया। 10
पृथ्वी की स्थिरता की रक्षा करते हुए पूर्ववर्ती नृपों ने जिस धुर को धारण किया था, उसे जिसने धारण किया, उसका वह पुत्र राज्यवर्धन हुआ जो अपने कुल ( की परम्परा) के अनुसार राज्य को बढ़ाता रहा । । 11।।
उसके बल की ऊष्मा से मन संतप्त हो जाने से शत्रुओं की नारियां रोयीं, किंकर्तव्यविमूढ हुईं, व्यथित हुईं, निःश्वास लेती रहीं और संज्ञाहीन बेसुध हो गयीं।
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उस राजश्रेष्ठ का नृपों में श्रेष्ठ पुत्र प्रकाशधर्मा हुआ जो अपने बाहुबल से शत्रुओं की समूची दीप्ति पी गया तथा जिसने अपने सुचरित से प्रकाश (के) धर्म या गुण को निर्मित या घटित किया || 13 ||
निर्मल कीर्ति से सम्पन्न, प्रभाव की ज्योति से सारे जगत में महनीय पौरुष - सम्पन्न, जनता का सच्चा स्नेहपात्र जो पूर्वजों की सुदृढ़ प्रतिष्ठा का अनुसरण कर रहा है। ||4||
अपनी वंश परम्परा से आगत, गुण में ही रस लेने वाली, शुभ फल का उदय करने वाली, पिता के द्वारा जीवितावस्था में ही आरोपित राजलक्ष्मी को जो अपने सुख के लिए नहीं अपितु लोकोपकार के लिए धारण करता है | ||5||
राजाओं की चूडामणियों की व्यापक ज्योत्स्ना- कांति से झिलमिलाते पादपीठों वाली प्रतिष्ठा धराव्यापी थी- ऐसे हूणराज तोरमाण सहित नृपों के (विरुद्ध) अधिराज शब्द को जिसने युद्ध के द्वारा मिथ्या कर दिया। 16
उसकी ही सेना के मदमत्त गजों को रणक्षेत्र में लम्बे तीरों से मार गिराकर उनके दांतों से बने श्रेष्ठ एवं मनहर भद्रासन जिसने तपस्वियों को भेंट किये। ॥7॥ रण में सरलता से जीतने वाले तथा जगत्प्रसिद्ध भुजविक्रम के चिह्न के हेतुभूत उस (तोरमाण) के ही रनिवास की श्रेष्ठ प्रमदाओं ( नारियों) को मथ ( पकड़ धकड़) कर जिसने भगवान् वृषभ ध्वज (शिवजी) की सेवा में ( देवदासी बनाकर ) समर्पित कर दिया। ||8||
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