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शोधर्मा का मन्दसौर स्तम्भलेख
इस श्लाघ्य वंश में जन्म लेने वाले इस यशोधर्मा का चरित पापहारी तथा कमनीय दिखायी देता है। यह धर्म का सदन है। इसके द्वारा निर्धारित मानवचरित (वृत्त) अपना सन्मार्ग नहीं छोड़ता - इत्यादि उत्कृष्ट गुणों को मानो चन्द्र- बिम्ब पर राग (अनुराग से तथा रंग से) लिखने के लिये पृथ्वी के कान्तिमान् समुन्नत बाहु के समान जो (स्तम्भ) सुशोभित हो रहा है। पवित्र कर्म करने वाले उस नृप के संतोष के लिये कक्क के पुत्र वासुल ने ये श्लोक रचे । 9
( यह प्रशस्ति) गोविन्द ने उत्कीर्ण की।
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