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प्राचीन भारतीय अभिलेख
10.
8. करके भी नहीं कर पाये। 8
नीति से शौर्य को, असीम मैत्री को अकुटिलता (सरलता) से, शुभेच्छाओं को कुल से, त्याग को (सु)पात्र से, वित्त उत्पत्ति को लज्जा से, यौवन को संयम से, वाणी को सत्य से, चेष्टा को वेद निर्दिष्ट पथ-विधान से तथा उत्तम ऋद्धि को प्रश्रय से बांधते हुए जो इस कलियुग के अंधकारलीन लोक में भी कभी कष्ट नहीं पाता है। 9 जिसके यज्ञों में सतत विधिपूर्वक हवन की अग्नि से उत्पन्न, काजल की भंगिमा सी कान्ति वाले धूम के सारी दिशाओं में फैल जाने पर उन्माद से उद्धत चित्त वाले मयूर यह विचारकर केकारव करने लगते हैं कि यह वर्षाकालीन नूतन जल के भार से झुकी कादम्बिनी या मेघमाला है।10 उदयाचल के शिखर से सूर्य के समान, विधाता से इन्द्र के समान, क्षीरसागर से चन्द्रकिरणों की अपेक्षा भी अधिक मनोरम प्रभा से पूर्ण कौस्तुभ मणि के समान, प्राणियों की स्थिति-कर्ता, अत्यंत (दृढ़, बलवत्तर) महिमाशाली पद पर सुशोभित, राजक (छोटे नृप) समूह रूपी आकाश के लिये चन्द्रमा (सा प्रशस्त प्रभावशाली) राजा श्री ईशानवर्मा उस (ईश्वरवर्मा) से उत्पन्न हुआ।11 प्रजा (जगत्) के उपकारी, शत्रु रूपी कुमुद की कान्ति तथा लक्ष्मी का
विलुप्त (नष्ट) कर्ता, मित्र रूपी कमल के लिये सूर्य (किरण), अमित 12. प्रताप की ज्योति से सम्पन्न सन्मार्ग को आच्छादित करने वाले कलियुग के
अंधकार में डूबे जगत् को सूर्य के समान जिसने पुनः अपनी क्रिया में प्रवृत्त करने के लये उद्यत किया। 12 तीन सहस्र कवचधारी (अथवा हाथियों) को पीछे हटाते हुए दस लाख से
अधिक 13. उछलते-भागते सूलिक अश्वों को रणक्षेत्र में विनष्ट कर आन्ध्र के स्वामी
को जीतकर; विस्तृत भूभाग को त्याग कर गौड़ों को (नौका तथा जहाज से) समुद्र में भागने को विवश किया जिसके चरणों पर नृपगण झुके रहते हैं ऐसा वह विजेता सिंहासन पर विराजमान हुआ। 13
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