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प्राचीन भारतीय अभिलेख
तावदकाण्डभंगजभयं त्यक्तम्परापाश्रयम् (।) यावन्नाविरकारि यस्य जनताकान्तं वपुर्बेधसा। 18
लक्ष्म्यः शत्रुभुवः कुचग्रहभयावेशभ्रम19. ल्लोचना (।) येनाकृष्य भुजेन विस्फुरदसिज्योतिः कलासङ्गिना
कान्ता मन्मथनेव कामितविदा गाढं निपीड्योरसा (1) प्रायेणान्यमनुष्यसंश्रयकृतं भावं परित्याजिता ॥ 19
तेनानतोन्नतिकृता 20. मृगयागतेन दृष्ट्वाद्यमन्धकभिदो भवनं विशीर्णम् (।)
स्वेच्छासमुन्नतमकारि ललामभूमेः क्षेमेश्वरप्रथितनाम शशाङ्कशुभ्रम्।। 20
एकादशातिरिक्तेषु षट्सु शातितविद्विषि। शतेषु शरदां 21. पत्यौ भुवः श्रीशानवर्मणि। 21
यस्मिन्कालेम्बुवाहा नवगवलरुचः प्रान्तलग्नेन्द्रचापा- स्तन्वत्याशवितानं स्फुरदुरुतडितः सान्द्रधीरं क्वणन्तः। वाताश्च वान्ति
नीपानवकुसुमचयानप्रमूर्नो22. धुनाना-स्तस्मिन्मुक्ताम्बुमेघद्युतिभवनमदो निर्मितं शूलपाणे:122
कुमारशान्तेः पुत्रेण गर्गराकटवासिना। नृपानुरागात्पूर्वेयमकारि रविशान्तिना॥ 23 उत्कीर्णा मिहिरवर्मणा। ओम्। जो जगत् की उत्पत्ति, विनाश तथा स्थिति के कर्ता विधाता के भी कारण हैं; रजोगुण से रहित एवं (अज्ञान के) अंधकार-पञ्जको जिन्होंने नष्ट कर दिया है ऐसे योगी भी जिसका ध्यान करते हैं। जिसके अर्धभाग में नारी स्थित होने पर भी हृदय में काम का स्थायी निवास नहीं है। उस
(पञ्च) भूतात्मक तथा त्रिपुर के विनाशक 2. भव (शिव) की जय हो जो श्रेय (कल्याण) का सर्जक (उत्पत्ति स्थल)
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