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यशोधर्मा विष्णुवर्धन का मन्दसौर शिलालेख
149 देने वाले, वृक्ष को जैसे बलशाली गजराज तोड़ दे वैसे ही कृतान्त के द्वारा कवलित काका अभयदत्त की पुण्य स्मृति में बुद्धिमान् (दक्ष) ने यहां विस्तृत तथा कलापूर्ण कूप बनवाया। 23 समय के ज्ञान के लिये मालव गण की स्थापना से 589 शरद् व्यतीत होने
पर -24 22. जिस काल कमनीय तथा कोमल वाणी वाली कोकिला की काम के शर
के समान आवाज परदेशी विरहियों के मन को छोड़ देती है, भ्रमरों की मदमस्त गुंजार कामदेव के धनुष को टंकार के समान वन वन में सुनाई दे-25 प्रियतप से रूठी माननियों के किसलय के समान अनुरागमय एवं भोलेपन को कम्पित करता हुआ वायु मान-भंग करने के लिये प्रेरित करता है; उस वसना मास में यह (कूप) बनवाया गया। 26 जब तक समुन्नत एवं विशाल भुजाओं सी तरङ्गों से सागर उदित होती किरणों के सान्निध्य से कमनीय चन्द्र का आलिंगन करता हुआ मैत्री बनाये रखता है तब तक अमृत सा स्वादिष्ट, स्वच्छ एवं बढ़ते जल वाला यह कूप
भी शोभित होता 25. रहे जो सौध (प्रासाद) के निकट मुण्डमाला के समान वृत्ताकार बना है। 27
विद्वान्, चतुर, उदार, सत्यव्रती, लज्जाशील, वीर, गुरुजनों का सेवक, कृतज्ञ, उत्साह सम्पन्न, स्वामी के कार्य में आलस्य रहित तथा दोषरहित यह (दक्ष) धर्म की चिरकाल तक रक्षा करे। 28 यह प्रशस्ति गोविन्द ने उत्कीर्ण की।
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