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प्राचीन भारतीय अभिलेख
14.
अब
15.
अन्धकों के लिये उद्धव के समान (अपने) बन्धुओं का आलम्बन था। 16 विविध नीति-प्रणाली का ज्ञाता, गहन अर्थ (शास्त्रीय) पथ में विदूर के समान दूरगामी दृष्टि से देखता था। संस्कृत तथा प्राकृत वाणी के रचनाबन्ध (काव्य) का कुशल वक्ता (रचयिता) था अतः कविगण उसकी अनुराग पूर्वक प्रशंसा करते थे। 17 समुन्नत पद को धारण करने वाला तथा प्रजा के भय को विलग करने वाला अभयदत्त नामक उसका अनुज हुआ जिसकी गुप्तचरी दृष्टि का अनुसरण करने वाले प्रबुद्ध नयन से पृथ्वी पर अत्यन्त सूक्ष्म तथा सुदूरवर्ती वस्तु भी
अदृष्ट न रही। 16. सफल कार्य कर्ता, शिखर के छोर से गिरते पाण्डु वर्ण की नर्मदा जलराशि
वाले विन्ध्य से लगाकर लंगूरों की उछल कूद से सहसा झुकते वृक्षों वाले पारियात्र पर्वत से सिन्धु के मध्यवर्ती, अपने पवित्र सचिवों से शासित अनेक
देशों 17. को राजा के प्रतिनिधि के रूप में, बृहस्पति के समान, चारों वर्गों की समृद्धि
के लिये (प्रजा) का पालन किया। 18 सारे वर्गों के सांकर्य का निषेध किया, शांति स्थापित की तथा सत्ययुग के
समान इस राज्य को जिसने आधि(चिन्ता) रहित कर दिया। 18. वह धर्मदोष स्वीकार की गयी भारी धुरा का अब धर्मपूर्वक वहन कर रहा
है जो दोषकुम्भ का पुत्र है। 20 अपने स्वामी के लिये जो अपने सुख से निरपेक्ष होकर एकाकी, दुर्गम पथ में भी अत्यंत गुरु (राज्य) धुरा के भार को धारण करता हुआ राजवेष तो चिह्न (पहचान) मात्र के लिये धारण करता है, वह जैसे भारी तथा लटकते हुए गलकम्बल को वृषभ (धारण करता है) 21 बहुमूल्य रत्नों से, हित एवं रक्षा के लिये शोभित होने वाली भुजा के समान, (प्रजा हित एवं रक्षा के आभूषण से अलंकृत), विशाल कन्धों वाले (धर्मदोष के) छोटे भाई दक्ष ने श्रुति तथा हृदय को आनन्ददाता निर्दोष नामक इस मनोरम विशाल कूप को खुदवाया। 22 सुखपूर्वक सेवन योग्य छाया वाले, पकने से हितकारी एवं स्वादिष्ट फल
20.
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