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विन्ध्यशक्ति द्वितीय का बासिम ताम्रपत्र
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(1) (प्रथम पत्र) सुपरीक्षित (यह आदेश)। सिद्धि हो। 1. वत्सगुल्म से धार्मिक महाराज, अग्निष्टोम, याम, वाजपेय, ज्योतिष्टोम, 2. बृहस्पतिसव तथा साद्यस्क्र (शीघ्र सम्पन्न होने वाले) चार अश्वमेध करने
वाले; विष्णुवृद्ध के सगोत्र हारीती (हारीत गोत्र की माता) के पुत्र, श्री प्रवरसेन के पौत्र,
धर्म (धार्मिक) महाराज श्री सर्वसेन के पुत्र, धर्म महाराज 5. वाकाटक वंश के श्रीविन्ध्यशक्ति की आज्ञा से नान्दीकट (नान्देड) के उत्तरी पथ पर. . .
(2) (द्वितीय पत्र : पूर्व भाग) 6. नान्दीकट के उत्तरी मार्ग (क्षेत्र) पर भाका, लक्षा तथा उप्रका के निकट
आकाशपद्र (ग्रामसमूह) में मुझ से सम्बद्ध सारे कर्तव्यस्थ (अधिकारी), आदेश प्रसारित करने वाले तथा अन्य उच्च कुलीन गुप्तचर को भी कहा जाय। हम अब विजयलाभ के लिये, आयु तथा बल वृद्धि के लिये, शुभ, तथा शान्ति के लिये, इस लोक तथा परलोक (में मंगल) के लिये इस धार्मिक भूमि वाले गांव में आथर्वण (अथर्ववेदी) ब्राह्मणों के लिये नियत
(प्रदत्त आकाशपद्रक ग्राम) का 10. आधा भाग भालन्दायन के सगोत्र सीत्वार्य, कापिञ्जल के. . .
(द्वितीय पत्र : अपर भाग) 11. सगोत्र रुद्रार्य, श्रविष्ठायण के सगोत्र भर्तृदेवार्य ।
कोशिक के सगोत्र देश्वार्य, कौशिक के सगोत्र विष्ण्वार्य 13. कौशिक के सगोत्र विध्यार्य, पैप्पलादि के सगोत्र के पित्रार्य 14. भालन्दायन के सगोत्र चन्द्रार्य, कौशिक के सगोत्र ज्येष्ठार्य, 15. भालन्दायन के सगोत्र बुद्धार्य, कौशिक के सगोत्र
(3) (तृतीय पत्र : पूर्वभाग) 16. भद्रिलार्य, कौशिक के सगोत्र शिवार्य, कौशिक के सगोत्र हिरण्यार्य, इन
ब्राह्मणों को (आधे गांव के) तीन भाग दिये। कौशिक सगोत्र 18. रेवत्यार्य को (अवशिष्ट) चौथा भाग। यह सब सूर्य चन्द्र की अवधि तक
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