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चन्द्रगुप्त द्वितीय का सांची शिलालेख
101 8. यना(म्नः ). . .रितस्य सर्वगुण-संपत्तये यावच्चन्द्रादित्यौ
तावत्पञ्चभिक्षवो भुंजतां र (ल)गृ(हे, च, दीप)को ज्वलतु (1) मम चापरार्धात्पञ्चैव
भिक्षवो भुंजता रत्नगृहे च 10. दीपक इ(ति)। (तदेतत्प्रवृत्तं य उच्छिन्द्यात्स गो-ब्रह्म-हत्यया
संयुक्तो भवेत्पञ्चभिश्चान11. न्तरिति (॥) सं 90 (+) 3 भाद्रपद-दि 4 (॥) सिद्ध हो। 1. काकनादबोट (सांची) के श्रीमहाविहार में शील, समाधि, प्रज्ञा आदि गुणों
में इन्द्रियों को मग्न करने वाले, अत्यन्त पवित्र स्थल के निवासी, चारों दिशाओं से आगत श्रेष्ठ श्रमण के निवास के लिये तथा आर्यसंघ के लिये, महाराजाधिराज श्रीचन्द्रगुप्त के चरणों की कृपा से जिसने जीविका प्राप्त की, आश्रित
सत्पुरुषों की सद्भाव (सतत) 4. वृत्ति (के लिये आवश्यक) अर्थ को लोक में प्रथित करते हुए अनेक युद्धों
में विजय एवं यश ध्वज प्राप्त करने वाला, सुकुलिदेश को 5. नष्ट करने वाला. . . निवासी उन्दान का पुत्र आम्रकाद्देव मज, शरभङ्ग एवं
आम्ररात सभासद (राजकुल) से 6. पञ्चमण्डली में मूल्य से ईश्वरवासक (नामक ग्राम-क्षेत्र) क्रय किया और
अभिवादन के साथ (यह तथा) पच्चीस दीनार प्रदान करता है। 7. ...जिसका आधा देवराज प्रिय नाम वाले महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त (की
ओर से प्रदान किया जाता है?) 8. ... (जिस की) सारे गुणों की समृद्धि के लिये चन्द्र तथा सूर्य की स्थिति
पर्यन्त (सदा) पांच भिक्षु भोजन
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